संदेश

मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

What to do after 10th (दसवीं के बाद क्या करें)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

चित्र
दसवीं पास होने के बाद क्या करें ? यह प्रश्न सभी उत्तीर्ण परीक्षार्थियों के मन में अनायास ही उठता है। आगे कौन सा विषय लें विज्ञान, कला या वाणिज्य। अगर आपके मन में भी यही प्रश्न है तो आइए तलाशते हैं इसका हल: विषयों की अधिकता, कैरियर के विकल्प और  जॉब की संभावनाएं : दसवीं पास होने के बाद सबसे बड़ी समस्या विषय का चयन होती  है। अनुकूल विषय का चयन अत्यंत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बाद का भविष्य इसी पर आधारित है। इस समय विद्यार्थियों के मन में यह दुविधा रहती है कि वह अपने सहपाठियों के अनुरूप विषय का चयन करें या अपने अभिभावक के अनुसार विषय चयन का निर्णय ले। लेकिन इन दोनों ही स्थितियों में कैरियर की संभावनाओं पर बुरा असर पड़ने की पूरी-पूरी गुंजाइश होती है। बहुत सारे छात्र अपने कैरियर के बारे में बिना कुछ सोच विचार किए ही संकाय का चयन कर लेते हैं। बगैर यह जाने कि इसमें आगे उनका भविष्य सुरक्षित है या नहीं। अतः छात्र को अच्छी तरह सोच- समझकर ही अपने संकाय का चयन करना चाहिए क्योंकि आगे का भविष्य उनके इसी चयन पर आधारित होगा। आइए जानते हैं उन संकायों के बारे में जिन्हें छात्र...

कोरोना का प्रभाव -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

कोरोना एक वैश्विक महामारी है। इसका वैश्विक प्रभाव इतना गहरा है कि यह एक नये वैश्विक 'शीतयुद्ध' का संकेत दे रहा है। भारतीय जनमानस पर भी इसका असर साफ-साफ दिखाई दे रहा है। इसे सहज ही अनुभव किया जा सकता है। इसमें मरकज़ी ज़मात की कारगुजारियां भी हैं तो मज़दूरों के पलायन का दर्द भी।कहीं  कोरोना योद्धाओं का अपने ही लोगों से प्रताड़ना का  दंश है तो कहीं मानवता के पतन की पराकाष्ठा भी। दरअसल, कोरोना कोविड-19 वायरस से फैलता है। इसमें सर्दी जुकाम के साथ-ही-साथ सांस लेने की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। यह वायरस बिल्कुल नई प्रकृति का है। मनुष्यों के लिए यह एकदम अपरिचित है। इसका संक्रमण अब विश्वव्यापी हो गया है। इसकी शुरुआत चीन के वुहान शहर से दिसंबर 2019 में ही हो गई थी। कहते हैं कोरोना वायरस का आकार मनुष्य के बाल के हजारवें हिस्से के लगभग बराबर  है। सामाजिक प्रभाव  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। कोरोना संक्रमण ने उसकी इसी खासियत पर हमला बोला है। आज वह  सामाजिक दूरी बनाकर जीने को विवश है। आज आदमी से आदमी डरा हुआ महसूस कर रहा है। किसी से बात करने में, हाथ मिलाने में और मिलने-...

स्त्री विमर्श -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

स्त्री सृष्टि का सृजन करती है। इसकी सृजनात्मक शक्ति द्वारा ही सृष्टि का कार्य संपादन होता है। प्रकृति और पुरुष के सम्यक प्रयत्न से यह प्रक्रिया निरंतर निर्बाध गति से जारी रहती है। 'शिवा' की जगत व्यापिनी शक्ति के अभाव में 'शिव' जैसे शव के समान हैं, जगत प्रतिपालक भगवान श्रीहरि लक्ष्मी के बिना श्रीहीन हैं। उसी तरह पुरुष नारी शक्ति के अभाव में अपूर्ण है। अतः इस संसार में दोनों का ही अपना विशिष्ट महत्व है। इन दोनों में से कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है, ऊंच या नीच नहीं है बल्कि दोनों की ही समान प्रतिष्ठा है। अतः नारी के प्रति किसी भी परिस्थिति में असम्मान की भावना सर्वथा अनुचित है, क्योंकि ऐसा होने से समाज में बहुत बड़े अनर्थ की संभावना है। हमारे देश के मनीषियों ने इस ओर संकेत करते हुए लिखा है -" यत्र नार्यंस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र  देवता"। स्पष्ट है स्त्रियों का आदर हमें देवत्व के सन्निकट लाता है। अतः नारी सदैव वंदनीया है। गृहस्थ जीवन बगैर इनके सहयोग के चल नहीं सकता। यह घर की स्वामिनी होती है। सारे मानवोचित संस्कार मनुष्य अपनी मां से ही सीखता है। अतः 'सामान्य म...

कोरोना-संक्रमण, मीडिया और बच्चे -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

आज कोरोना का जो संकट है उसका प्रभाव हमारे देश के बच्चों पर भी पड़ रहा है। बच्चे जब संक्रमण का सामना करते हैं या सामना करते हुए लोगों को देखते हैं तो उनके मन में क्या प्रतिक्रिया होती है या क्या प्रतिक्रिया होती होगी; इसका विश्लेषण आवश्यक है। कोई भी मनुष्य अपने जीवन में किसी तरह का कोई संकट नहीं चाहता लेकिन हमारा जीवन संकटों से भरा पड़ा है। हर कदम पर नए-नए संकटों का सामना करना पड़ता है, जूझना पड़ता है और जीवन की जंग को अंततः जीतना पड़ता है। जीत की इसी चाह में कभी-कभी अवसाद का सामना भी करना पड़ता है। इस अवसाद का व्यापक असर हमारे जीवन पर भी पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को एक वैश्विक महामारी घोषित किया है। कोरोना वायरस मानव की बाल की तुलना में 900 गुना छोटा होता है लेकिन इसका संक्रमण दुनिया में तीव्र गति से फैल रहा है और यह संपूर्ण विश्व को एक विचित्र तरह के संकट में डाले हुए हैं। संकट तो कोई नहीं चाहता लेकिन मानव जीवन संकटों की कहानियों से भरा पड़ा है। आंखों से जब बच्चे तड़पते-बिलखते, रोते-छटपटाते, असहाय, जान बचाने के लिए इधर-उधर बेतहाशा भागते हुए लोगों को देखते हैं तो ज...

पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

आधुनिक भारत में भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसने हमारी युवा वर्ग की मानसिकता को बहुत अधिक प्रभावित किया है। परंपरागत संस्कारों की अवहेलना और आलोचना इनके स्वभाव में परिलक्षित हो रहा है। कोराना की फैली महामारी ने हमारे संस्कारों की पुनः याद दिला दी है। अब हमें पूर्वजों द्वारा दिए गए संस्कारों पर गर्व करने का समय आ गया है। आलोचकों के होंठ सिल गए हैं। अब सबको समझ में आ गया कि हमारे पूर्वजों द्वारा दिए गए संस्कारों में कितनी वैज्ञानिकता छिपी हुई थी। अतः हमें पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से बचना चाहिए। वर्तमान समय में गुरुजनों के प्रति हमारा आदर-भाव तिरोहित हो चला है। हम अंधविश्वास और रूढ़िवाद के विरोध के साथ-सथ अपने अच्छे और विशिष्ट संस्कार जो हमारी संस्कृति की विशेषता है उसे भी खोते होते चले जा रहे हैं। जिस तरह हमें अंधविश्वासों को आंख मूंदकर नहीं स्वीकारना चाहिए उसी तरह अपने विशिष्ट संस्कारों को भी दरकिनार नहीं करना चाहिए। यह सत्य है कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभावस्वरूप हमें बाल-विवाह और सती-प्रथा जैसी कुप्रथा मिटाने में सहयोग मिला। फिर भी, भारतीय संस्क...

अथ योगानुशासनम् -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

मनुष्य अपने दु:खों की निवृत्ति चाहता है। इसके लिए वह अहर्निश प्रयासरत रहता है परंतु सांसारिक आकर्षण में आबद्ध रहने के कारण उसे क्लेश और अभाव का सामना करना पड़ता है जिससे उसके मन में अवसाद उत्पन्न होता है। अवसादजन्य शारीरिक और मानसिक रूग्णता से जीवन दुखमय हो जाता है। इसी तरह के अनेक कष्टों से मुक्ति हेतु हमारे तत्वचिंतक ऋषियों ने शरीर, मन और प्राणों की शुद्धि हेतु आठ साधन बतलाए हैं जिन्हें अष्टांग योग कहते हैं। ये हैं  - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। जिनमें आजकल सर्वाधिक लोकप्रिय 'आसन' है क्योंकि इसके द्वारा ही शरीर और मन संयमित होता है -'स्थिरसुखमासनम्'(यो. सू.)। अर्थात् शरीर को स्थिर और मन को सुखी करनेवाली स्थिति ही 'आसन' है। योग शब्द 'युज्' धातु से बना है जिसका अर्थ है मिलन। आत्मा और परमात्मा का सम्मिलन ही योग है। आत्मा परमात्मा का यह मिलन चित्त वृत्तियों के निरोध द्वारा ही संभव है क्योंकि इसके द्वारा ही एकाग्रता की प्राप्ति की जाती है -'योगश्चित्तवृत्ति निरोध:'। चित्तवृत्तियों के निरोध से समाधि स्वयमेव संभव हो ज...

आदमी की तलाश -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

आतुर हैं प्राण           खुशियों की तलाश में. बेबस मानव है                   खुले आकाश में. फुटपाथ पर              पुरानी -सी चादर में, कटती जिंदगी               कितनी अनादर में, विकल हैं प्राण             झोपड़ी की आस में. रोटी की राह में                      बहुत हैं रोड़े, आओ सभी           पाप का मटका फोड़े, जर्जर यौवन           जीवन के मधुमास में. कहीं एक टुकड़ा                     रोटी के लाले, कहीं लड्डुओं के                       भोग निराले, ईश्वर है गगनचुंबी                         ...

दौलत के लिए देह का सौदा -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के फलस्वरूप हमारे रहन-सहन में व्यापक बदलाव आया है। धन को ही सब कुछ मानने की मानसिकता ने हमारी संस्कृति को तहस-नहस कर दिया है। प्रायः प्रतिदिन किसी न किसी 'सेक्स स्कैंडल 'का उद्भेदन समाचार माध्यमों में विशिष्ट स्थान पाते रहते हैं। एड्स के मकड़जाल में भारत के फंसने के बावजूद भी 'कॉल गर्ल्स 'की प्रासंगिकता बनी हुई है। कहीं पुरुषों की पाशविकता के फलस्वरूप सामूहिक बलात्कार की शिकार औरतें अवसादग्रस्त हो न्याय पाने हेतु दर-दर की ठोकरें खा रही हैं; प्रेमियों से परित्याग के बाद आत्महत्या को मजबूर हो रही हैं; सुविधा-संपन्न प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा इस्तेमाल करने और फेंक देने की नीति के तहत बेवफाई की शिकार हो अपनी जान तक गवां बैठती हैं तो कहीं फैशन के नाम पर सुडौल देह-यष्टि का नग्न प्रदर्शन जारी है। मॉडलिंग के नाम पर नारी की नुमाइश हो रही है। सौंदर्य प्रतियोगिताओं में आंतरिक परिधानों की पारदर्शिता से अश्लीलता और कामुकता को बढ़ावा मिल रहा है तो कहीं 'ब्लू फिल्म 'के प्रदर्शन पर रोक की मांग हो रही है। सरकार ने सेक्सुअल साइटों पर प्रतिबंध लग...

ग़ज़ल -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

फिजा में फिर वही खामोश हलचल है। सैय्याद की बाहों में कैद अब बुलबुल है।। शहर में छाई है   अब मातमी खामोशी। शैतानों के घर खूब यहां चहल - पहल है।। दरख़्तों पर  डाला है  बाजों ने  बसेरा। सहमा - सहमा आज   सारा जंगल है।। हर दिल को इतना गहरा पहुंचा है सदमा। अब  चारों तरफ से    घेरे हुए दलदल है।। कितना खौफनाक हो गया इस जहां का मंज़र। कतरा - कतरा  कटा हुआ  अब हरेक गुल है।। तूफान में  घिरी हुई है  जैसे अब कश्ती। दोस्तों, मझधार में खोई हुई मंजिल है।।

लड़की -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

चित्र
सूने  घर  आंगन  में  फूल  हुई  लड़की। चूल्हे  की आंच  से  बबूल  हुई  लड़की।। सुबह हुई,  आज़ादी  की  नई हवा चली; बेटों-सा  फिर भी न  कबूल हुई लड़की।। मनचलों  के  दिल  जलने  लगे  हर बार, सज के घर से जब स्कूल चली लड़की।। सपने  हुए  जवां  जब  छोटे-से  दिल में, बाबुल  के  हृदय  की  शूल  हुई लड़की।। रिश्तो  का  व्यापार  यह  दहेज की मार, घर  के  लिए  जैसे  फिजूल  हुई लड़की।। रूढ़ियों  की  कैद  में  घुटती  रही  सदा, अजीब  रिवाजो  का  उसूल हुई लड़की।। आपका हो साथ  तो हर जुल्म मिट जाए, जमाने की आबरू का आईना हो लड़की।।

एक ग़ज़ल -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

ना जाओ कभी उस डगर साथी। प्यार का जिधर हो ना घर साथी।। सूने सपने आँखों में केवल, आस सच होने की सिफ़र साथी।। गाँव तो दीख रहा साफ़ इतना, दूर बहुत ज़िगर से मगर साथी।। ज़ुबां से तो वे टपकाते शहद, मगर ज़िगर में लिए ज़हर साथी।। दिल की बात कह दो न साफ़-साफ़, पता हो न हो तुझे बहर साथी।। मंज़िल मिलेगी, मिलेगी ज़रूर, मिहनत में न रख अब कसर साथी।।               ------धर्मेन्द्र कुमार पाठक

सावन जब..-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

सावन जब बादल बरसाये। रजनी मेरी खाट भिगाये।। दिल तो अब रोने को आये। क्यों आज़ादी का जश्न मनायें? कितने दशक सदियाँ बीतीं। झोपड़ियों की आँखें रीतीं।। सपने मन में कौन सजाये। प्रियतम जब अपने घर आये।। ख़्वाब लूट मसीहा बन जाते। खुद पर ही हम ख़ूब पछताते।। ऐसे क्यों रिश्ते पनपायें? छलिया से कैसे बच पायें?                 -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

खुली किताब -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

1. आंखों में सपने मचल रहे हैं जाने क्यों लोग उबल रहे हैं 2. अगर अपनों का साथ होता, तो हर ज़र्रा आफ़ताब होता! 3. बजा दो श्याम बांसुरी, मिटा दो शक्ति आसुरी! 3. मन तो सावन-भादो है और जीवन कादो-कादो है 4. घर में बहुत सन्नाटा है...., लगता है आज बाप ने बहुत डाँटा है....! 5. समय के पटल पर  जो उकेरा हुआ चित्र है  वह भी अपना मित्र है। 6. जीवन आशा है, संसार  तमाशा है; यह अंतस्तल का संवाद है, शेष सभी अपवाद है। 7. आज़ादी मन गई, राखी बँध गई; सीने पर वक़्त की बेरहम सुई फिर तन गई। 8. वह भी बड़ा है  जो  अपने पाँव पर खड़ा है। 9. मोहब्बत से दुनिया खाली नहीं होती                            इश्क में किसीकी रखवाली नहीं होती 10. तेरी कृपा का अद्भुत विस्तार है                                   प्रभु तेरी महिमा अपरंपार है 11. दर्पण कुछ इस तरह मुझसे रूठा है                      ...

एक नवगीत -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

संग-संग           सुख-दुःख                      शीत-घाम सहूँ! प्रियवर,          अब              कुछ तुम कहो,                               कुछ मैं कहूँ! हास-परिहास                 सब                     साथ-साथ                                 प्रतिपल, अब     आँखों में आँखें                      डाल सहूँ! घुल-मिल             जाये                   दो दिल                            गंगा-जल-सा, प्रिये, ...

कुछ क्षणिकायें -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

               1. आँख खुलते ही  सपने रूठ गए,  जो शेष थे  अपने लूट गए,   रिश्तों के धागे  कमजोर थे शायद  टूट गए!                 2. अपने भी  हलचल  देखते हैं घर की  चहल - पहल  देखते हैं क्या है  झोपड़ी  या  महल  देखते हैं फिर  अपना  इरादा  बदल देते हैं .               3. मौत को  यों  मरने  नहीं दूंगा. मै  उसे  अपनी  जिंदगी दूंगा.               4. तुम  पास  होते हो  तो  तन्हाई  नहीं होती. यों  तन्हाई  में भी  तुमसे  जुदाई  नहीं होती.                 5. ये दुश्मन ही हैं  जो मरने की  दुआ देते हैं. वरना अपने तो यहां...

तूफां में -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

तूफ़ां में तूफ़ां में तड़पते हैं प्राण,        लुटा-लुटा-सा मन का मकान! उड़ी झोपड़ी करुणा फूटी,       सपनों से अब आँखें रूठी,                किस्मत के आगे कब चलती,                                         हैं अपने बने अनजान! अनवरत अपनी सानी में,            दौड़ रहे सागर पानी में,                    अचेत प्रिया चुनर धानी में,                                          कैसे हो अब सुबह संज्ञान! ओह, प्रकृति का क्रूर विनाश,         सूना-सूना हृदय आकाश,               फीके-फीके हुये उल्लास,                               ...

अहं ब्रह्मास्मि -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

अहं ब्रह्मास्मि  यह  जो  विस्तृत  ब्रह्माण्ड है  मैं उसका  एक कण  मात्र हूं  लेकिन  मुझ जैसे  छोटे से  कण में भी  अनेक  सूक्ष्मत्तम  कण हैं और  प्रत्येक  सूक्ष्म - से - सूक्ष्म  कण में भी  अनेक  स्वतंत्र  विस्तृत  ब्रह्माण्ड हैं यहां  प्रत्येक क्षण  अणु - अणु  परमाणु - परमाणु  का  संलयन - विलयन  हो रहा है  असीमित  ऊर्जा का  अंतर - रूपांतर  हो रहा है  प्रकृति - पुरुष  अभिव्यक्त  हो रहे और उद्घोषित कर रहे  - " अहं ब्रह्मास्मि"।                         -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

तम को ललकार दे -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

                                                जग में नफ़रत  जब फैला अंधकार दे      दीया  प्यार के तू हर दिल में  बार दे                                तम  को ललकार दे।      नव कलियाँ  जब बाग़ की मुरझाने लगे           जब जिंदगी में ग़म  घिर उलझाने लगे                जब धर्म - कर्म मानवता मिटाने लगे                       तू सांस - सांस को आस का श्रृंगार दे                                               तम को ललकार दे।          रजनी के पास ही भोर का निवास  है   ...

खेतों की ख्वाहिश -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

उमस बहुत है आज ज़रूर बारिश होगी। बासमती खेतों की यह ख्वाहिश होगी।।          झुलसे न मन कहीं पश्चिमी झकोरों से,         बागों में कलियों की   फरमाइश होगी।। करेंगे क्या-क्या    पेटेंट के एजेंट सारे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी क्या   लावारिश होगी।।        हार कर   बैठ न जाना   दीवाने वतन,      मेड़ों पर अब जोर आजमाइश होगी।। झोपड़ी को    रोशनी से    भर देने की, आप सभी से पुरजोर गुजारिश होगी।।      नायाब परिंदों-सा  किसानों का ज़िगर,     ज़मीनों आसमां तलक रिहाइश होगी।। कल तुमने जीत ली आज़ादी की जंग यही वो रकबा है जहाँ सताइश होगी।।    कौन तौलेगा  हमारी ताकत को अब,   दुनिया भर में  जभी नुमाइश होगी।।                -@धर्मेन्द्र कुमार पाठक                          ...

यह कौन है -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

यह कौन है जो तस्वीर बदल रहा है,  अपने वतन की तक़दीर बदल रहा है ? हवा की बेरुखीको  बार-बार हरा  मंजिल को छूने में सफल रहा है  जिंदगी की चुनौतियाँ तो कुछ भी नहीं  यह दिया तो तूफानो में भी जल रहा है  बेशक ये तुम्हारा ही इरादा है  जो मेरे इरादों से घुल-मिल रहा है

क्या कहूं -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्या कहूं  कि नियति यही है जी रहा हूं वहां जहां जीवन नहीं है बस  हवा में  हिल रहे हैं  हाथ आंखों की रोशनी  धुंध की मानिंद अपनी करतब करते पुकारते तुमको काश! साथ आते कुछ बातें करते कनेर के फूलों की लाली और गेहूं की बाली फागुनी बयारों के  गीत गाते काश!  तुम एक बार फिर आ जाते ----धर्मेन्द्र कुमार पाठक

पहली बार -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

पहली बार देखा था तुझे  छत पर स्वेटर  बुनते हुये... मिलते ही नज़र तुम्हारी नाज़ुक  हथेलियों से कांटों को  फिसलते हुए... फ़िर तो न जाने  ऎसे कितने वाकये हो गए.... हम एक दूसरे से  मिलते गए आंखों में सपने  तिरते गये वक़्त की नज़ाकत  तो देखो हम एक दूसरे में  मिटते गए क्या से क्या  बनते गए....            @धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

कुछ अटपटे दोहे -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

लोकतन्त्र में नेता की, राजा जैसी ठाट। और घर में ग़रीब की, टूट रही है खाट॥ है लीला यह वोट की, लो देख करामात। भिखमंगों को खिलाते, पूछ-पूछ कर जात॥ जात-पात की राग में, नेता गाते गीत। और इसीके आसरे, चुनाव जाते जीत॥ चारों ओर विकास की, करते ख़ूब प्रचार। सत्तासीन होने पर, देते उसे विसार॥ नेताओं की चाल से, बँटता रहा समाज। मतदाताओं की फूट, पहनाता है ताज़॥

भावनाओं का अंतर्लाप -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

भावनाओं का अन्तर्लाप समय के साथ गतिशील संवेदनाओं के विविध प्रकोष्ठों में एक-दूसरे को  संयोजित करते हुए हृदय के आकाश में विस्तीर्ण हो जाता है जैसे पाटल की पंखुड़ियाँ अपना सुगंध विखेर प्रकृति के वन-प्रान्तर में शुष्क धरा पर फैल जाती हैं निष्काम.......... निर्लिप्त...........।

नवप्रभात -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

जब सुबह होती है और  हवा धीरे-से रजनी का अवगुण्ठन हटाती है..... तब... आरंभ हो जाता है  प्रकृति का अद्भुत अभिसार.... और  दिवस के आगोश में  समा जाती है  थकी-हारी रात  और फिर, धरती की गोद में खिलखिलाने लगता है नवजात....! नवप्रभात!!

विकल विश्व -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

विकल विश्व विह्वल मन को आज व्यथित करता है.              रोती-धोती वसुधा तल में,                 करुणा भर देती जल में ,   अवनि से  अम्ब र तक आज क्रंदनमय दिखता है.              कैसा बदल गया नभ है,              सबका बदल गया मग है, मुँह चिढ़ाती सभ्यता अब देख समय कहता है.              प्रेमी पागल मन मारे,             गली-गली प्रीत पुकारे,  रक्त सने हाथों कोई प्रेम-गीत लिखता है.              तेरे मधुर-मधुर मन में,            बस जाता कोई क्षण में, विरही पलों के सहारे अन्तर में पलता है.   

महाकवि हरिनाथ की शक्ति-साधना (सं.1900 - 1961) लेखक - स्व. डॉ. सुरेश पाठक

चित्र
ब्रह्म तक कई तरीके से पहुंचा जा सकता है - सगुन या निर्गुण उपासना द्वारा। निराकार ब्रह्म की प्राप्ति बड़ी कठिन है; स्वरूप के अभाव में ध्यान करना मुश्किल है। अतः हमारे पूर्वजों ने हमें सगुण उपासना द्वारा भगवान तक पहुंचना सिखाया। इस मार्ग द्वारा प्रभु तक पहुंचना आसान बना दिया गया। इस उपासना में हम विग्रहवान प्रभु का ध्यान करते हैं। इसमें जब उन तक पहुंचने की उत्कंठा ही नहीं अपितु बेचैनी भी हो जाती है तब उनकी प्राप्ति हो जाती है। यही परमात्मा स्रष्टा, पालक एवं संघारक है।                                             महाकवि हरिनाथ पाठक                                                    डॉ सुरेश पाठक शरीरधारियों के जन्म में मां का योगदान कल्पनातीत है। कारण यह है कि उसे गर्भधारण से जन्म के उपरांत भी अनेकों कष्ट झेलने पड़ते हैं। पिता तो...

मीडिया की स्थिति पर एक नजर

मीडिया का प्रभाव आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित होता है। इसने मनुष्य के रहन-सहन से लेकर आचार-व्यवहार तक को प्रभावित किया है। आजकल मीडिया की सक्रियता काफ़ी बढ़ गई है। 'स्ट्रिंग ऑपरेशन' से यह कई सफेदपोशों को बेनकाब कर चुकी है। 'रक्षा-विभाग' से लेकर 'संसद' तक में इसने तहलका मचाया है। परंतु अतिशय आत्ममुग्धता ने कई बार इसका सर भी शर्म से  झुकाया है। कुछ बदनाम वरिष्ठ पत्रकारों की रंगरेलियों ने इस पर कई सवाल खड़े किए हैं। कई मीडिया हाउसों पर पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता का आरोप भी लगता रहा  है। अब इसे बेदाग नहीं माना जाता। यह स्थिति मीडिया के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। वर्तमान समय में पीत पत्रकारिता, अश्लीलता, नकारात्मक समाचार, अपराधियों का महिमामंडन और अत्यधिक व्यावसायिकता की होड़ में विशुद्ध पत्रकारिता का ह्रास हुआ है। फिर भी, तटस्थ पत्रकारों ने इसका मान बढ़ाया ही  है। संपूर्ण पत्रकारिता जगत को ईमानदार पत्रकारों पर गर्व का अनुभव होता है। कई निर्भीक पत्रकारों को सरकार के कोप का सामना भी करना पड़ता है। आये दिन पत्रकारों पर राजनीतिक दलों द्वारा हमले बढ़ते जा रहे है...

विषय चयन की स्वतंत्रता इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के संदर्भ में

वातावरण में विविध प्रकार के संदेश संचरित हो रहे हैं।विषय की प्रासंगिकता और माध्यम के स्वरूप के अनुसार संवाददाता अपने विवेक से इनमें से संप्रेष्य संदेशों का चयन करता है। पुन: माध्यम की प्रकृति के अनुसार उनका रूपांतरण करता है और तत्पश्चात प्रसारण हेतु संप्रेषित करता है। विषय की व्यापकता से चयन की समस्या उत्पन्न होती है। संप्रेषण संदेश में लक्षित समूह का भी ध्यान रखना होता है। संप्रेषण की शैली माध्यम के अनुरूप ही रखी जाती है। माध्यम की विविधता से प्रस्तुतीकरण में अंतर आ जाता है। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के प्रस्तुतीकरण में भिन्नता होती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी रेडियो और टीवी की प्रस्तुति में व्यापक अंतर होता है। रेडियो में तथ्यों का ध्वन्यांकन ही हो पाता है क्योंकि यह केवल श्रव्य माध्यम है। अतः इसमें सहज, सरल और बोधगम्य भाषा का प्रयोग होता है। प्रायः इसमें बोलचाल की भाषा ही प्रयुक्त होती है ताकि सभी कोटि के श्रोताओं के मस्तिष्क में शब्द सुनते ही उसका अर्थ स्पष्ट हो जाय। जटिल और दुरूह शब्दों का प्रयोग इसमें वर्जित है। श्रोताओं के पास इसमें विषय चयन की कोई स्वतंत्रता नहीं ...

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का अन्तर्संबंध

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का अंतर्सबंध                                                                 -धर्मेन्द्र कुमार पाठक इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का एक-दूसरे से गहरा संबंध है। ये दोनों परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं। दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आविष्कार सूचना प्रौद्योगिकी का ही कमाल है। टीवी, रेडियो, फिल्म और इंटरनेट आज के युग के लिए अपरिहार्य हैं। आधुनिक युग में मोबाइल मीडिया - क्रांति का अग्रदूत बनकर उभरा है। सोशल मीडिया की भी आज अपनी एक निराली दुनिया है। आज यह लोगों को एक आभासी दुनिया की सैर करा रही है। आज का समाज इसके आभामंडल में खो-सा गया है। यह आभासी दुनिया आज के समाज के लिए एक चुनौती बनकर भी उभरा है।  मीडिया सूचना का प्रमुख माध्यम होता है। आज के युग में सूचना ही शक्ति है। इसके अभाव में हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। सूचना मार्गदर्शक का काम करती  है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दरअसल प्रिंट की बुनिया...

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रिन्ट मीडिया पर प्रभाव

अध्ययन का औचित्य प्रिंट मीडिया जनसंचार का प्राचीन और महत्वपूर्ण रूप है। आधुनिक युग में इसके कलेवर की आकर्षकता अधिक बढ़ गई है। विविध विषयों से संबंधित अनेक सुरूचिपूर्ण सूचनासंपन्न आलेख इसकी श्रीवृद्धि करते हैं। राजनीतिक,  आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, खेल और वैज्ञानिक अनुसंधानों तक की ताजातरीन ख़बरें इसमें प्रकाशित होती हैं। पुस्तकों का संसार विस्तृत तो है ही। प्रिंट मीडिया से लोगों की अपेक्षायें भी बहुत हैं। विशेषकर प्रबुद्ध वर्गों को भाषा की शालीनता और मर्यादित पत्रकारिता की अपेक्षा है। युवा वर्ग अपने कैरियर और शिक्षा से संबंधित पत्र - पत्रिकाओं और विशेषांकों की बड़ी वेसब्री से प्रतीक्षा करता है। सम्पूर्ण विश्व में प्रिंट मीडिया का स्वरूप बदला है। छपाई से लेकर आकार और विषय चयन में परिवर्तन स्पष्ट परिलक्षित होता है। हिंदी और अंग्रेजी के सभी प्रमुख समाचार - पत्रों में इसकी झलक मिलती है। सूचनाओं को जन - जन तक संप्रेषित करना मीडिया का लक्ष्य है। प्रिंट मीडिया की इसमें गहरी निष्ठा है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के विविध स्वरूपों से जनता को जागृत करना इसका दायित्व है। मीडिया की ...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोहब्बत -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्यों तुम रूठ गई? -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

What to do after 10th (दसवीं के बाद क्या करें)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक