जग में नफ़रत जब फैला अंधकार दे
दीया प्यार के तू हर दिल में बार दे
तम को ललकार दे।
नव कलियाँ जब बाग़ की मुरझाने लगे
जब जिंदगी में ग़म घिर उलझाने लगे
जब धर्म - कर्म मानवता मिटाने लगे
तू सांस - सांस को आस का श्रृंगार दे
तम को ललकार दे।
रजनी के पास ही भोर का निवास है
रात के आकाश में शशि का प्रकाश है
अश्रु के अधर पर भी मधुर - मधुर हास है
हर होंठ को नव मुस्कान से सँवार दे
दीया प्यार के तू हर दिल में बार दे
तम को ललकार दे।
दमकता है ज़हान, प्यार के प्रकाश से
महकता है गुलशन, प्यार के सुवास से
लहलहाती है ज़मी, प्यार के घास से
हर दिल को तू भी, प्यार का त्योहार दे
तम को ललकार दे।
सूर्य , चन्द्रमा की रोशनी भी क्या करे
दीया आत्मा के ही जो बुझा करे
दिल न हो तो दौलत से कोई क्या करे
आत्म -ज्ञान से तू, जगमगा संसार दे
तम को ललकार दे।
आपस में लड़ रहे हिन्दू, सिख, मुसलमां
क्योंकर बेच रहे सब अपना हिन्दोस्तां
बोलते हो क्यों नहीं, अरे मूर्ख, नादां !
भूलकर भेद - भाव, दिल पे दिल वार दे
तम को ललकार दे।
वेद है, कुरान है, बाइबिल महान है
गुरूजी की वाणी में एक ही गान है
प्रेम ही ज़िन्दगी प्रेम ही निर्वाण है
सबको अब तू, प्रेम का ही संसार दे
दीया प्यार के तू हर दिल में बार दे।
तम को ललकार दे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें