कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रिन्ट मीडिया पर प्रभाव

अध्ययन का औचित्य
प्रिंट मीडिया जनसंचार का प्राचीन और महत्वपूर्ण रूप है। आधुनिक युग में इसके कलेवर की आकर्षकता अधिक बढ़ गई है। विविध विषयों से संबंधित अनेक सुरूचिपूर्ण सूचनासंपन्न आलेख इसकी श्रीवृद्धि करते हैं। राजनीतिक,  आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, खेल और वैज्ञानिक अनुसंधानों तक की ताजातरीन ख़बरें इसमें प्रकाशित होती हैं। पुस्तकों का संसार विस्तृत तो है ही।
प्रिंट मीडिया से लोगों की अपेक्षायें भी बहुत हैं। विशेषकर प्रबुद्ध वर्गों को भाषा की शालीनता और मर्यादित पत्रकारिता की अपेक्षा है। युवा वर्ग अपने कैरियर और शिक्षा से संबंधित पत्र - पत्रिकाओं और विशेषांकों की बड़ी वेसब्री से प्रतीक्षा करता है।
सम्पूर्ण विश्व में प्रिंट मीडिया का स्वरूप बदला है। छपाई से लेकर आकार और विषय चयन में परिवर्तन स्पष्ट परिलक्षित होता है। हिंदी और अंग्रेजी के सभी प्रमुख समाचार - पत्रों में इसकी झलक मिलती है।
सूचनाओं को जन - जन तक संप्रेषित करना मीडिया का लक्ष्य है। प्रिंट मीडिया की इसमें गहरी निष्ठा है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के विविध स्वरूपों से जनता को जागृत करना इसका दायित्व है।
मीडिया की व्यापकता से इसका कार्य क्षेत्र बढ़ा है। फलतः इसके अंदर ही कई अन्य विभाग बन गए हैं। इससे प्रस्तुतीकरण के स्वरूप में परिवर्तन आया है।
मीडिया सूचना, प्रचार, ज्ञान और मनोरंजन का साधन है। इससे उद्योग, सरकार, संस्था और राजनीतिक दल सबका उद्देश्य पूरा होता है। यह सामाजिक परिवर्तन की दिशा तय करता है। स्पष्टत: इसका बहुउद्देशीय रूप हमारे समक्ष प्रकट हुआ है।
मीडिया स्वयं में एक उद्योग है। इसके लिए हमारे देश में पर्याप्त संसाधन मौजूद है ही। इसमें रोज़गर  की असीम संभावनायें हैं। यही कारण है कि आज के दौर में इसका व्यवसायीकरण हो गया है।
मीडिया में फिल्म, साहित्य, खेल, चुटकुले और हास्य - व्यंग प्रधान आलेख होते हैं। इससे प्रबुद्ध वर्गों को स्वस्थ मनोरंजन मिलता है। सारगर्भित निबंध और आलेख विद्वद्जनों में समादृत होता है।
मीडिया की व्यापकता ने हमारे समाज के विविध क्षेत्रों को प्रभावित किया है। अभिव्यक्ति की सवतन्त्रता से लोकतंत्र मजबूत बना है। सूचना के अधिकार ने भी इसमें आमूल - चूल परिवर्तन ला दिया है। सूचना - क्रांति के युग में आम जनता को सूचना से विमुख नहीं रखा जा सकता। इससे हमारी सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के प्रतिमान बदले हैं।
सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रिंट मीडिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। भाषा की संरचना से लेकर प्रस्तुतीकरण के तरीके तक में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। अब प्रिंट मीडिया का भी कलेवर आकर्षक और मनमोहक बन गया है। इससे विविध विषयों से संबंधित सुरूचिपूर्ण अनेक रिपोर्ट और सूचनायें पाठकों को पढ़ने को मिलती हैं।
समाचार की प्रस्तुति पर फीचर हावी हो गया है। अब समाचार के प्रभावों की प्रत्येक पहलू की विवेचना भी अख़बारों का प्रिय विषय बन गया है। इससे समाचार के अंदर समाचार की पहचान होने लगी है। लोगों पर किसी खास समाचार का क्या असर होगा इसकी पड़ताल शुरू हो जाती है। विशेषज्ञों की राय आमंत्रित कर प्रकाशित की जाती है। इससे समाचार का मूल्य बढ़ जाता है।
फिर भी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आगमन ने किस - किस रूप में  सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव प्रिंट मीडिया पर छोड़ा है, इसकी विवेचना आवश्यक है।
                                    सकारात्मक प्रभाव
1. विषय का विस्तार
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कलाकारों को एक मंच मुहैया कराया। इससे साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा मिला। अभिनय, संगीत और काव्य - कला को लोकप्रिय बनाने का स्वर्णिम अवसर उपस्थित हुआ। इससे संबंधित रिपोर्ट प्रिंट में भी स्थान पाने लगे। इससे प्रिंट मीडिया में प्रकाशित होनेवाले विषयों में वेतहासा वृद्धि हुई।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने देशों की भौगोलिक दूरियां कम कर दी। इससे प्रिन्ट मीडिया वैश्विक परिदृश्य में स्थापित होने लगा - नित नवीन विषयों की रोचक प्रस्तुति के साथ।
2. आकर्षक प्रस्तुतीकरण 
मीडिया का आज व्यापक विस्तार हुआ है। नई सूचना -प्रौद्योगिकी के विकास से नये - नये चैनलौं में निरंतर वृद्धि हो रही है। प्रिंट मीडिया पर भी इसका साफ असर दिखता है। इनके भी संख्या लगातार बढ़ रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से होड़ लेने के लिए इसका नवीन लोग काफी आकर्षक दिखता है। इससे पाठकों का ध्यान आकृष्ट करने में सफलता मिल रही है।
3. कलात्मकता में वृद्धि
इसका एक और सकारात्मक प्रभाव यह है कि प्रिंट मीडिया में समाचार और सूचना को बड़े कलात्मक अंदाज में प्रस्तुत किया जाता है। आंकड़ों को एक ही जगह प्रस्तुत करने से विषय से संबंधित सारी सूचनाएं एक ही स्थान पर समाविष्ट कर दी जाती हैं। चित्रों और फॉन्टों की विविधता में इसका प्रयोग आम होता जा रहा है। इससे संप्रेेेषणीयता में वृद्धि हुई है।
4. अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति का उदय
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विषय से संबंधित दृश्यों का समायोजित स्वरूप प्रस्तुत करता है जिससे विषय की गुणवत्ता बढ़ जाती है। इससे प्रिंट मीडिया में भी प्रतिस्पर्धा आती है और अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति का उदय होता है। विषय के तह तक पहुंचने की कोशिश से विषय का प्रत्येक पहलू पाठकों को उपलब्ध हो जाता है।
5. जन समस्याओं का उचित कवरेज
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का राजनीतिक गतिविधियों पर ज्यादा ध्यान होता है। सरकार और राजनीतिक दलों की गतिविधियां किसी बुलेटिन का ज्यादा समय लेती हैं। इससे जन समस्याओं से जुड़े विषय समाचार का हिस्सा बनने से रह जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चुकी समाचार को शीघ्र प्रसारित कर देता है। अतः प्रिंट के लिए इसका रोमांच इतना महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है।
प्रिंट अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखने के लिए जन समस्याओं की ओर रुख करता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिन्हें छोड़ कर आगे बढ़ जाता है प्रिंट उसे उचित कवरेज प्रदान कर पत्रकारिता के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करता है।
6. विश्वसनीयता का विस्तार
प्रिंट पर आज भी लोगों की अटूट आस्था है क्योंकि यह लोगों के पास अवलोकनार्थ सदैव मौजूद रहता है। अतः इसमें प्रकाशित तथ्य स्वत: ही मूल्यवान हो जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रिंट मीडिया के लिए कई तरह की सूचनाएं सहज में ही उपलब्ध कराती हैं जिससे प्रिंट को इसका 'समाचार - मूल्य' तलाशने का मौका मिल जाता है। इसका लाभ लेते हुए वह खबरों को और अधिक सूचना - संपन्न बना देता है।
7. वैश्विक परिदृश्य से परिचय
लेक्ट्रॉनिक मीडिया ने विश्व के कोने-कोने के समाचारों को शीघ्रता से सबके सामने लाने में कामयाबी हासिल की है। इससे प्रिंट मीडिया का विषय विस्तार ही नहीं अपितु वैश्विक परिदृश्य को सुनने - समझने और उस पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने का अवसर प्राप्त हो जाता है। फलत: यह इसकी विशिष्टता और कमी पर तटस्थ समालोचना करने में समर्थ हो जाती है। इससे प्रिंट मीडिया की पाठकीयता में वृद्धि होती है।
8. संस्कृति का वैश्वीकरण
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने विश्व के विभिन्न संस्कृतियों को एक मंच पर ला खड़ा किया है। समाज पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है । फलत: एक वैश्विक संस्कृति का उदय हो चुका है। प्रिंट मीडिया पर भी इसका स्पष्टत: असर है। विश्व के प्रमुख समाचार पत्रों का अपना 'वेबसाइट' है। अतः प्रिंट मीडिया भी अघोषित रूप से एक-दूसरे से कुछ -न- कुछ ग्रहण करते हैं। विश्व के अखबारों में समानता से यह स्पष्ट भी होता है। इस तरह हमारी संस्कृति और संस्कार का वैश्वीकरण हो चुका है और यह प्रिंट मीडिया में भी पल्लवित हो रहा है।
8. सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध सशक्त हथियार
संपूर्ण पत्रकारिता जगत सामाजिक विद्रूपताओं को दूर करने के लिए प्रयासरत है। फिर वह चाहे घूसखोरी हो, कालाबाजारी हो, दहेज - प्रथा या व्यभिचार ही क्यों न हो। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने 'स्टिंग ऑपरेशन' द्वारा सबका पर्दाफाश किया है। पहले भी प्रिंट मीडिया में इस तरह की खबरें प्रकाशित होती थी परंतु उसका असर उतना व्यापक नहीं होता था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की यह पहल प्रिंट मीडिया के लिए भी वरदान साबित हुआ है। आज का प्रिंट मीडिया इन समाचारों को पहले से अधिक मुखरता से प्रकाशित करता है। पत्रकारिता का यह रहस्य और रोमांच पाठकों में उत्साह भर देता है।
                    नकारात्मक प्रभाव
1. पीत पत्रकारिता में वृद्धि
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते 'ग्लैमर' के कारण पीत पत्रकारिता अपनी चरम सीमा पर आसीन है। फलस्वरूप स्तरहीन खबरें प्रकाशित हो जाती हैं जिससे समाज पर बुरा असर पड़ता है। संस्कृति में विद्रूपता का समावेश हो जाता है।
पत्रकारिता में ब्लैक मेलिंग का सिलसिला भी चल पड़ा है। कुछ पत्रकारों की यह करतूत पत्रकारिता के पवित्र पेशे को कलंकित कर रही है। आज लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ में भी भ्रष्टाचार दस्तक दे रहा है। प्रिंट मीडिया भी अपने आपको इसे बचा नहीं पाई है।
2. अश्लीलता का आगमन
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अश्लीलता का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। सेक्स से जुड़ी ख़बरें इनका रोचक विषय बनता जा रहा है। इससे समाज पर कुप्रभाव पड़ता है और प्रिंट मीडिया भी इस अंधी दौड़ में शामिल होता प्रतीत हो रहा है। समाचार पत्र के परिशिष्ट - अंक में फूहड़ तस्वीरों की भरमार होती है। फिल्म के नाम पर कामुक दृश्यों वाली तस्वीरें धड़ल्ले से छाप दी जाती हैं।
3. नकारात्मक पत्रकारिता का विकास
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का शुभारंभ भी नकारात्मक समाचारों से होता है। अपना टीआरपी रेट बढ़ाने के लिए विविध चैनल खबरों को आपराधिक पृष्ठभूमि की तलाश कर प्रस्तुत करने में अधिक अभिरुचि लेते हैं। खबरों के नकारात्मक पक्ष को उभार कर 'विशेष - रिपोर्ट' के अंतर्गत दिखाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। प्रिंट मीडिया भी इसे प्रकाशित करना अपनी विवशता मानता है। यह प्रवृत्ति अब आम आम होती जा रही है।
इस प्रवृत्ति के कारण सकारात्मक समाचारों का स्थान सीमित होता जा रहा है। समाज को सही दिशा देने वाले लोग उपेक्षित महसूस करते हैं। प्रिंट मीडिया में इस प्रवृत्ति के बदलने की आज बड़ी आवश्यकता है।
4. अपराधियों का महिमामंडन
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़े-बड़े अपराधियों को ग्लैमराइज कर प्रदर्शित किया जाता है। इस तरह का कोई कार्यक्रम प्रस्तुत होने से पूर्व ही मीडिया के सभी रूपों में प्रचारित किया जाता है। दाऊद इब्राहिम के कारनामों पर प्रायः प्रत्येक न्यूज़ चैनल के पास वीडियो क्लिप्स मौजूद हैं। ऐसे ही छोटे - बड़े सभी अपराधियों पर न्यूज़ स्टोरी प्रसारित होती रहती है। इससे अपराधियों को बिना किसी प्रयास के प्रचार मिल जाता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस प्रचलन का प्रिंट मीडिया भी अनुसरण करती है और अपराधियों से जुड़ी सारी सूचनाएं प्रकाशित करती है। इससे अपराधी लोग प्रिंट में भी स्थान पा लेते हैं। मीडिया में इस प्रचलन के बढ़ने से समाज के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
5. अति व्यवसायीकरण
आर्थिक उदारीकरण ने मीडिया में भी विदेशी निवेश के द्वार खोल दिए हैं। इससे आज प्रत्येक मीडिया समूह एक उद्योग का रूप ले चुका है। इससे प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों का उद्देश्य अर्थ - लाभ हो गया है। इससे तटस्थ पत्रकारिता प्रभावित हुई ही है।अखबारों और न्यूज चैनलों में विज्ञापन की भरमार हो गई है। 
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का बढ़ता व्यवसायीकरण प्रिंट मीडिया को भी इस ओर उन्मुख कर दिया है। प्रिंट मीडिया में भी व्यवसायिकता अपनी चरम सीमा पर है।

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