कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का अन्तर्संबंध

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का अंतर्सबंध
                                                                -धर्मेन्द्र कुमार पाठक
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का एक-दूसरे से गहरा संबंध है। ये दोनों परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं। दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आविष्कार सूचना प्रौद्योगिकी का ही कमाल है। टीवी, रेडियो, फिल्म और इंटरनेट आज के युग के लिए अपरिहार्य हैं। आधुनिक युग में मोबाइल मीडिया - क्रांति का अग्रदूत बनकर उभरा है। सोशल मीडिया की भी आज अपनी एक निराली दुनिया है। आज यह लोगों को एक आभासी दुनिया की सैर करा रही है। आज का समाज इसके आभामंडल में खो-सा गया है। यह आभासी दुनिया आज के समाज के लिए एक चुनौती बनकर भी उभरा है। 
मीडिया सूचना का प्रमुख माध्यम होता है। आज के युग में सूचना ही शक्ति है। इसके अभाव में हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। सूचना मार्गदर्शक का काम करती  है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दरअसल प्रिंट की बुनियाद पर ही खड़ा है। प्रकाशित प्रत्येक शब्द प्रिंट का ही प्रतिरूप जो है ! भाषा का जहां-जहां लिखित प्रयोग होता है वहां- वहां प्रिंट की प्रासंगिकता  सहज रूप में समझ में आती है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अर्थ यंत्र आधारित मीडिया प्रस्तुतीकरण से है। आज करीब-करीब विश्व के सभी प्रमुख समाचार पत्रों का इंटरनेट संस्करण उपलब्ध है।अखबार का इंटरनेट संस्करण कंप्यूटर रूपी यंत्र पर ही पढ़ा जाता है। अतः इसे भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ही एक रूप में मानना समीचीन होगा। इसकी साज-सज्जा भी कंप्यूटर के मानदंडों के अनुसार ही होती है। इसकी संप्रेषणीयता भी उच्च कोटि की होती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के अंतर्संबंधों को इन उपशीर्षकों के अंतर्गत व्याख्यायित किया जा सकता है।
यांत्रिक संबंध
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट दोनों को ही अपनी आकर्षक प्रस्तुति हेतु कंप्यूटर का आश्रय लेना पड़ता है। प्रिंट की बेहतर छपाई के लिए नवीन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अत्यावश्यक है। इससे प्रिंट मीडिया में कमाल की आकर्षण-क्षमता पनपती है जिससे पाठक वर्ग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
ग्राफिक्स का इस्तेमाल प्रिंट में भी होता है और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी। इससे दोनों के समाचार की गुणवत्ता बढ़ जाती है। प्रस्तुतीकरण को जानदार बनाने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों ही इसका भरपूर प्रयोग करते हैं।
भाषिक संबंध
भाषा मीडिया की जान है फिर चाहे वह प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक। यह दोनों की ही आधारशिला है। इसके बिना प्रस्तुतीकरण बेजान-सा हो जाएगा।
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के प्रस्तुतीकरण शैली अलग-अलग होती है। प्रिंट मीडिया की भाषा विवरणात्मक और सूचना-प्रधान होती है। इसमें विषय के प्रत्येक पहलुओं की उचित व्याख्या की जाती है। भाषा की शालीनता विषय-वस्तु को महत्वपूर्ण बना देती है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी रेडियो और टीवी के प्रस्तुतीकरण में अलग-अलग तरह की भाषा-शैली का इस्तेमाल होता है।
रेडियो में हम किसी विषय या घटनाक्रम के बारे में सुनकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। अत: इसमें बोलचाल की भाषा का प्रयोग होता है। ध्वन्यात्मक शब्द प्रस्तुतीकरण को जानदार बना देते हैं।
टीवी में हम प्रस्तुत कार्यक्रम को खुली आंखों से देख रहे होते हैं। इसमें केवल दृश्य ही कथ्य का काम करते हैं।इसमें केवल उन्हीं बातों को स्वर दिया जाता है जिसे दृश्य स्पष्ट करने में असमर्थ होते हैं।
इस तरह भाषिक संबंध मीडिया के हर रूप में गहराई से जुड़ा हुआ है।
विषयगत  संबंध
मीडिया का उद्देश्य आम जनता को जागृत करना होता है। यह शिक्षा, मनोरंजन और सूचना का प्रमुख साधन है।
आज के आधुनिक युग में मीडिया का उत्तरदायित्व काफी बड़ा है। यह समाज को शिक्षित और मनोरंजक ही नहीं अपितु मर्यादित भी करती है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट दोनों का उद्देश्य एक ही है। उद्देश्य एक होने से दोनों में विषयगत समानता अवश्यंभावी है। विषय एक होने पर भी माध्यम भिन्न होने से प्रस्तुतीकरण में अंतर आ जाता है। फिर भी, दोनों की कार्यशैली एक ही मंजिल को पाने की होती है। यही दोनों को एक दूसरे से जोड़ता है।
प्रस्तुतिगत संबंध
विषय की समानता प्रस्तुतीकरण में समानता का मार्ग प्रशस्त करती है।इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट दोनों में ही समाज के व्यापक हित में प्रमुख बिंदुओं पर ज्यादा जोर देने की परंपरा रही है। किसी एक समाचार में उठाए गए मुद्दे भी सामान ही होते हैं। यही कारण है कि माध्यम की भिन्नता के बावजूद दोनों में ही समाचार का सार-तत्व एक ही होता है। मीडिया सामाजिक क्रांति की सम्वाहिका भी रही है। समाज के मानदंडों को तय करने में इसका अप्रतिम योगदान रहा है।किसी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में इसकी व्यापक सहभागिता होती है।


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