कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

मीडिया की स्थिति पर एक नजर

मीडिया का प्रभाव आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित होता है। इसने मनुष्य के रहन-सहन से लेकर आचार-व्यवहार तक को प्रभावित किया है। आजकल मीडिया की सक्रियता काफ़ी बढ़ गई है। 'स्ट्रिंग ऑपरेशन' से यह कई सफेदपोशों को बेनकाब कर चुकी है। 'रक्षा-विभाग' से लेकर 'संसद' तक में इसने तहलका मचाया है। परंतु अतिशय आत्ममुग्धता ने कई बार इसका सर भी शर्म से  झुकाया है। कुछ बदनाम वरिष्ठ पत्रकारों की रंगरेलियों ने इस पर कई सवाल खड़े किए हैं। कई मीडिया हाउसों पर पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता का आरोप भी लगता रहा  है। अब इसे बेदाग नहीं माना जाता। यह स्थिति मीडिया के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। वर्तमान समय में पीत पत्रकारिता, अश्लीलता, नकारात्मक समाचार, अपराधियों का महिमामंडन और अत्यधिक व्यावसायिकता की होड़ में विशुद्ध पत्रकारिता का ह्रास हुआ है। फिर भी, तटस्थ पत्रकारों ने इसका मान बढ़ाया ही  है। संपूर्ण पत्रकारिता जगत को ईमानदार पत्रकारों पर गर्व का अनुभव होता है। कई निर्भीक पत्रकारों को सरकार के कोप का सामना भी करना पड़ता है। आये दिन पत्रकारों पर राजनीतिक दलों द्वारा हमले बढ़ते जा रहे हैं। राजनीतिक दल असहमति को स्वीकार करना नहीं चाहते जबकि असहमति लोकतंत्र की मजबूती का द्योतक है। अन्वेषी पत्रकारों ने न्यायालय के 'नालायकों' को भी कटघरे में खड़े करने में कोई कोताही नहीं बरती है। भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ आज भी 'अभिमन्यु' की तरह डटा है। हालांकि लोकतंत्र के अन्य स्तंभों की तरह पत्रकारिता में भी कम भ्रष्टाचार नहीं है। राजनीति के 'धृतराष्ट्र' और 'दु:शासन' ने समय-समय पर इस पर हल्ला बोला है, लेकिन फिर भी यह युद्ध में निर्भीक अकेला खड़ा है।
नवीन सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से जहां पत्रकारिता के कई अन्य स्वरूप विकसित हुए हैं, वहीं पत्रकारिता के अंदर भी कई अलग-अलग विभाग विभाग हैं। आर्थिक पत्रकारिता, राजनीतिक पत्रकारिता,साहित्यिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता और सांस्कृतिक पत्रकारिता। इसी कड़ी में वैज्ञानिक पत्रकारिता भी शामिल हो चुकी है। सोशल मीडिया की अपनी अलग ही आभासी दुनिया है। आज का युवा इसके चंगुल में गिरफ्त है। स्पष्ट है, पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।
मनुष्य की दिनचर्या और व्यवसाय भी इससे प्रभावित हैं। यह जनसंचार का माध्यम तो है ही। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रक्षक भी है। यही कारण है कि लोकतंत्र में इसकी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखने की बड़ी जरूरत है। हम मीडिया के भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। भाषा और सांस्कृतिक समृद्धि के साथ-ही-साथ यह जन समस्याओं को भी सुलझाने में अपना योगदान देगी, ऐसा हमारा विश्वास है।

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