कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

नवप्रभात -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

जब सुबह होती है
और 
हवा धीरे-से
रजनी का अवगुण्ठन
हटाती है.....
तब...
आरंभ हो जाता है 
प्रकृति का
अद्भुत अभिसार....
और
 दिवस के आगोश में
 समा जाती है
 थकी-हारी रात 
और फिर,
धरती की गोद में
खिलखिलाने लगता है
नवजात....!
नवप्रभात!!

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