कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

खेतों की ख्वाहिश -धर्मेन्द्र कुमार पाठक



उमस बहुत है आज ज़रूर बारिश होगी।
बासमती खेतों की यह ख्वाहिश होगी।।
         झुलसे न मन कहीं पश्चिमी झकोरों से,
        बागों में कलियों की   फरमाइश होगी।।
करेंगे क्या-क्या    पेटेंट के एजेंट सारे,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी क्या   लावारिश होगी।।
       हार कर   बैठ न जाना   दीवाने वतन,
     मेड़ों पर अब जोर आजमाइश होगी।।
झोपड़ी को    रोशनी से    भर देने की,
आप सभी से पुरजोर गुजारिश होगी।।
     नायाब परिंदों-सा  किसानों का ज़िगर,
    ज़मीनों आसमां तलक रिहाइश होगी।।
कल तुमने जीत ली आज़ादी की जंग
यही वो रकबा है जहाँ सताइश होगी।।
   कौन तौलेगा  हमारी ताकत को अब,
  दुनिया भर में  जभी नुमाइश होगी।।
               -@धर्मेन्द्र कुमार पाठक
                
                
              

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