कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

लड़की -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

सूने  घर  आंगन  में  फूल  हुई  लड़की।
चूल्हे  की आंच  से  बबूल  हुई  लड़की।।

सुबह हुई,  आज़ादी  की  नई हवा चली;
बेटों-सा  फिर भी न  कबूल हुई लड़की।।

मनचलों  के  दिल  जलने  लगे  हर बार,
सज के घर से जब स्कूल चली लड़की।।

सपने  हुए  जवां  जब  छोटे-से  दिल में,
बाबुल  के  हृदय  की  शूल  हुई लड़की।।

रिश्तो  का  व्यापार  यह  दहेज की मार,
घर  के  लिए  जैसे  फिजूल  हुई लड़की।।

रूढ़ियों  की  कैद  में  घुटती  रही  सदा,
अजीब  रिवाजो  का  उसूल हुई लड़की।।

आपका हो साथ  तो हर जुल्म मिट जाए,
जमाने की आबरू का आईना हो लड़की।।


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