कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

कुछ अटपटे दोहे -धर्मेन्द्र कुमार पाठक



लोकतन्त्र में नेता की,
राजा जैसी ठाट।
और घर में ग़रीब की,
टूट रही है खाट॥
है लीला यह वोट की,
लो देख करामात।
भिखमंगों को खिलाते,
पूछ-पूछ कर जात॥
जात-पात की राग में,
नेता गाते गीत।
और इसीके आसरे,
चुनाव जाते जीत॥
चारों ओर विकास की,
करते ख़ूब प्रचार।
सत्तासीन होने पर,
देते उसे विसार॥
नेताओं की चाल से,
बँटता रहा समाज।
मतदाताओं की फूट,
पहनाता है ताज़॥

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