कोरोना एक वैश्विक महामारी है। इसका वैश्विक प्रभाव इतना गहरा है कि यह एक नये वैश्विक 'शीतयुद्ध' का संकेत दे रहा है। भारतीय जनमानस पर भी इसका असर साफ-साफ दिखाई दे रहा है। इसे सहज ही अनुभव किया जा सकता है। इसमें मरकज़ी ज़मात की कारगुजारियां भी हैं तो मज़दूरों के पलायन का दर्द भी।कहीं कोरोना योद्धाओं का अपने ही लोगों से प्रताड़ना का दंश है तो कहीं मानवता के पतन की पराकाष्ठा भी।
दरअसल, कोरोना कोविड-19 वायरस से फैलता है। इसमें सर्दी जुकाम के साथ-ही-साथ सांस लेने की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। यह वायरस बिल्कुल नई प्रकृति का है। मनुष्यों के लिए यह एकदम अपरिचित है। इसका संक्रमण अब विश्वव्यापी हो गया है। इसकी शुरुआत चीन के वुहान शहर से दिसंबर 2019 में ही हो गई थी। कहते हैं कोरोना वायरस का आकार मनुष्य के बाल के हजारवें हिस्से के लगभग बराबर है।
सामाजिक प्रभाव
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। कोरोना संक्रमण ने उसकी इसी खासियत पर हमला बोला है। आज वह सामाजिक दूरी बनाकर जीने को विवश है। आज आदमी से आदमी डरा हुआ महसूस कर रहा है। किसी से बात करने में, हाथ मिलाने में और मिलने-जुलने में परहेज कर रहा है। चूंकि कोरोना संक्रमण संसर्ग से फैलता है। अतः हर आदमी आज एक दूसरे से मिलने में कतरा रहा है। ऐसे में मनुष्य को उसकी पहचान खोने का खतरा है। फिर भी, आदमी तो आदमी ही ठहरा। वह कहां रुकने वाला! सरकार की लाख हिदायतों के बावजूद भी वह एक-दूसरे से मिलने को बेताब है। यह बेताबी भी बड़ी विचित्र है। इस बेताबी से निजात पाना आसान नहीं। सामाजिक दूरी बनाए रखना और समाज में ही रहना। ये दोनों ही विरोधाभासी बातें हैं, परंतु मनुष्य को इसको भी मानना ही होगा। नहीं तो वह और अधिक संकट झेलने को तैयार रहे।
आर्थिक प्रभाव
कोरोना संक्रमण ने आज बहुत से लोगों को बेरोजगार बना दिया है। अधिकतर लोगों की आजीविका छिन गई है। जो सरकारी सेवा में है उनके तो वारे न्यारे हैं। बाकी सब गम के मारे हैं।जिनका स्वयं का व्यापार है उनके संकटों का तो कोई पार ही नहीं। फिर भी, राशन दूकान वालोँ को राहत है।निजी कंपनी में काम करने वालों के लिए तो यह दोहरी मार जैसी है। एक तो उनका रोजगार छिन गया दूजे उनके खाने के भी लाले पड़े हैं। उन्हें तो सरकारी खैरात भी मुहाल नहीं। देश की एक बड़ी आबादी घोर आर्थिक संकट में फंस गई है। देश के नेतृत्व के सामने इस संकट से निबटने की बड़ी चुनौती है।
राजनीतिक प्रभाव
कोरोना संकट ने देश के राजनीतिक वर्ग को भी परेशान कर रखा है। उन्हें इससे निबटने के उपाय सूझ नहीं रहे। सरकार द्वारा जो समाधान प्रस्तुत किए जा रहे हैं उस पर विपक्ष की प्रतिक्रिया दिग्भ्रमित करने वाली है। ना तो वे खुलकर सरकार का साथ दे रहे और नहीं मुखर प्रतिरोध कर पा रहे। उनकी स्थिति 'सांप छछूंदर वाली' हो गई है। ना तो निगलते बन रहा और ना ही उगलते।
कुल मिलाकर विरोधी पक्ष में नकारात्मकता तेजी से बढ़ रही है। जबकि देश को इस समय संकट से निबटने के लिए सकारात्मक सहयोग की नितांत आवश्यकता है। आमजन को भी अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करनी होगी, तभी इस संकट से हमारा राष्ट्र या यूं कहें कि पूरा विश्व उबर पाएगा अन्यथा हमें बड़ी क्षति उठानी पड़ेगी।
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