पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के फलस्वरूप हमारे रहन-सहन में व्यापक बदलाव आया है। धन को ही सब कुछ मानने की मानसिकता ने हमारी संस्कृति को तहस-नहस कर दिया है। प्रायः प्रतिदिन किसी न किसी 'सेक्स स्कैंडल 'का उद्भेदन समाचार माध्यमों में विशिष्ट स्थान पाते रहते हैं। एड्स के मकड़जाल में भारत के फंसने के बावजूद भी 'कॉल गर्ल्स 'की प्रासंगिकता बनी हुई है। कहीं पुरुषों की पाशविकता के फलस्वरूप सामूहिक बलात्कार की शिकार औरतें अवसादग्रस्त हो न्याय पाने हेतु दर-दर की ठोकरें खा रही हैं; प्रेमियों से परित्याग के बाद आत्महत्या को मजबूर हो रही हैं; सुविधा-संपन्न प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा इस्तेमाल करने और फेंक देने की नीति के तहत बेवफाई की शिकार हो अपनी जान तक गवां बैठती हैं तो कहीं फैशन के नाम पर सुडौल देह-यष्टि का नग्न प्रदर्शन जारी है। मॉडलिंग के नाम पर नारी की नुमाइश हो रही है। सौंदर्य प्रतियोगिताओं में आंतरिक परिधानों की पारदर्शिता से अश्लीलता और कामुकता को बढ़ावा मिल रहा है तो कहीं 'ब्लू फिल्म 'के प्रदर्शन पर रोक की मांग हो रही है। सरकार ने सेक्सुअल साइटों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना प्रारंभ कर दिया है। महिला सशक्तिकरण के लिए आंदोलन चलाए जा रहे हैं। फिर भी आधुनिक नारी के प्रति यह विरोधाभासी दृष्टिकोण विचित्र तरह का विभ्रम पैदा कर रहा है। नारी स्वतंत्रता के नाम पर सामाजिक वर्जनाएं टूट रही हैं। भारतीय संस्कृति के लिए यह संक्रमण काल है जिसमें अपनी अस्मिता बचाए रखना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है।
ऐसा भी नहीं है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सिर्फ भारतीय संस्कृति को ही नुकसान पहुंचाया है अपितु इससे विश्व की सभी प्रमुख संस्कृतियां प्रभावित हुई हैं। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने न्यूयॉर्क के संदर्भ में यह रहस्य उद्घाटित किया है कि आसानी से धन कमाने की ललक में संभ्रांत कुल की किशोरियां भी देह व्यापार में स्वेच्छा से प्रवृत्त हो रही हैं। विवाह पूर्व यौनसंबंध युवाओं का शगल बन रहा है। विवाहित व्यक्तियों के भी विवाहेत्तर संबंध देखे जा रहे हैं। स्पष्ट है, दांपत्य जीवन में एक दूसरे पर फिदा होने वाली आस्था खत्म हो रही है। हाल ही में संपन्न एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया कि भारत में भी 26 प्रतिशत युवा विवाह पूर्व यौनसंबंध रखते हैं।
इन परिस्थितियों का अवलोकन करते ही हमारा ध्यान प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक बुराई दौलत के लिए देह व्यापार का धंधा 'वेश्यावृत्ति' की ओर आकृष्ट होता है। यह सभ्य समाज के लिए अभिशाप है। एक औरत की मानसिक चेतना की यह विक्षिप्तावस्था है जिसमें वह रात्रि में दुल्हन-सी सोलहों श्रृंगार कर सुहागिन होने का स्वांग रचती है और सुबह विधवा-सी श्रीहीन हो जाती है। उसके लिए यह त्रासद स्थिति है जहां उसका निजत्व खत्म हो जाता है। चंद रुपयों के लिए देह का यह व्यापार औरत की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को आत्मसात किए है। यह परिस्थितियों का दुष्चक्र है, पुरुषों की पाशविकता या औरतों की स्वेच्छाचारिता की इस कुत्सित वृत्ति से समाज को कभी निवृत्ति नहीं मिलती। डॉक्टर हैवलॉक का मानना है कि 'वेश्या' रोटी और मांस की तरह बाजार में मिलनेवाली वस्तु नहीं है। सचमुच, यह पुरुषों की कुत्सित मनोवृति का निकृष्टतम परिणाम है। समाज में पारिवारिक व्यवस्था के प्रति वेश्याओं के महत्व का उल्लेख करते हुए शोपेनहावर का कहना है कि 'वेश्याएं' एक-पत्नीव्रत की बलिवेदी पर मानवीय बलिदान है। भारतीय ज्योतिषियों ने यात्रा के समय इनका दर्शन शुभ माना है। संस्कृत के कवियों ने भी इसकी पुष्टि की है। 'देशाटनं पंडित मित्रता वारंगना राज्यसभा प्रवेश:।'
प्राचीन भारतीय मान्यतानुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ एक व्यक्ति के जीवन में समान महत्त्व रखते हैं। मनुष्य के षोडस संस्कारों का विभाजन भी कुछ इस तरह है कि मनुष्य पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति हेतु समान समय दे सके। मनुष्य की पूर्णता इन चारों के साधन में ही निहित है परंतु आज की जीवनशैली में यह सब अप्रासंगिक हो चला है। अर्थ और काम ही महत्वपूर्ण हो गए हैं। अब तो इस विषय में विचार मंथन भी वक्त की बर्बादी माना जाता है। पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के समय 14 रत्नों के अंतर्गत 'रंभा' नाम की अप्सरा के प्राकट्य का भी वर्णन है। स्कंद पुराण के अनुसार, महर्षि दुर्वासा ने स्वर्ग की अप्सराओं को भूलोक में जाने का अभिशाप देते हुए कहा कि चारों वर्णों के पुरुषों के संयोग से जो संतान उत्पन्न होगी वह पंचम जाति 'वेश्या' कहलायेगी। मत्स्य पुराण के अनुसार, देवासुर संग्राम में व्यापक संहार हुआ। बहुसंख्यक पुरुष हताहत हुए। अधिकांश अनाथ और विधवा स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ। इंद्र ने उन्हें तीर्थस्थानों या बड़े शहरों में रहने की व्यवस्था दी। ये बेसहारा औरतें पुरुषों की यौनाकांक्षाओं की पूर्ति कर अपनी आजीविका चलाने को विवश थीं। कुछ इसी तरह 'वेश्यावृत्ति' का जन्म हुआ। आज भी अधिकांश तीर्थस्थानों या बड़े शहरों में वेश्याओं की उपस्थिति देखी जा सकती है। हालांकि औद्योगिक शहरों में इनकी उपस्थिति औद्योगिकीकरण का परिणाम है जहां दूरदराज से अपनी पत्नियों को छोड़कर आये पुरुष इनकी ओर उन्मुख होते हैं।
ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्यों से प्रतीत होता है कि विवाह प्रथा के साथ ही वेश्यावृत्ति का भी जन्म हुआ। वेदों, पुराणों, उपनिषदों, बौद्ध तथा जैन धर्म ग्रंथों में भी वेश्याओं के बारे में उल्लेख है। भगवान बुद्ध से जुड़ी कई कथाओं में भी वेश्याओं का वर्णन हुआ है। कभी-कभी तो वेश्याएं अपने रूप-लावण्य से राजा-महाराजाओं पर भी वर्चस्व बनाए रखती थीं। ये विषकन्या के रूप में तथा सुरक्षाकर्मियों के रूप में भी नियुक्त होती थीं। अपनी प्रतिभा और मनोहारी सूरत के कारण वह समाज में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लेती थीं। 'आम्रपाली' की राजनैतिक हैसियत को उदाहरण स्वरूप देखा जा सकता है।
संसार के सभी श्रेष्ठ महापुरुषों ने 'वेश्यावृत्ति' के उन्मूलन हेतु प्रयास किए हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी इस संदर्भ में व्यापक विचार मंथन होने का प्रमाण मिलता है। वराह मिहिर रचित 'वृहत्संहिता' के 18वें अध्याय में वेश्याओं के बारे में विशद् वर्णन है। स्कंद पुराण और याज्ञवल्क्य स्मृति में भी इस संदर्भ में किया गया वर्णन अवलोकनीय है। संस्कृत के स्वनाम धन्य कवियों यथा विशाखदत्त, कालिदास, भास, शूद्रक तथा माधव आदि ने अपनी रचनाओं में भी इनका उल्लेख किया है। कुछ ग्रंथ तो वेश्याओं के चरित्र पर ही आधारित हैं। इनमें समय मातृका, समय प्रदीप, कला विलास, कुट्टनीमतम, वारंगना कल्प तथा वेश्यावृत्ति आदि प्रमुख हैं। स्पष्ट है कि वेश्यावृत्ति की यह बुराई अति प्राचीन है।
अब प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों और कैसे सभ्य समाज की एक बहू या बेटी 'वेश्या' बन जाती है। इसके मूल में उसके घर, परिवेश, समाज और आर्थिक परिस्थितियों का विशेष योगदान होता है। इन कारणों में प्रमुख हैं -
1.गरीबी
2.पति या प्रेमी द्वारा परित्याग के पश्चात आजीविका की समस्या
3. पति से परित्याग के बाद संतान के लालन -पालन की गंभीर समस्या
4. माता-पिता या पति की प्रेरणा या भय
5. प्रेमियों द्वारा वेश्यावृत्ति के लिए फुसलाया जाना
6. माता-पिता या पति का दुर्व्यवहार
7. मनचले या दुर्जन पुरुषों द्वारा बहकाया जाना या शारीरिक यंत्रणायें देकर इसके लिए बाध्य करना
8. माता-पिता या पति की मृत्यु के बाद उदर पूर्ति हेतु समुचित साधन का अभाव
9. विलासिता का सम्मोहन या सुखों का घोर अभाव
10. मादक द्रव्यों का आवश्यकता से अधिक सेवन।
परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही हों यदि कोई लड़की इस नारकीय जीवन में पहुंच जाए तो उसे इससे निकालकर उचित सम्मान दिलाने की आवश्यकता है। इसके लिए नारियों के बौद्धिक स्तर को ऊंचा उठाने हेतु प्रबल प्रयास होने चाहिए। इन्हें विवाह हेतु समुचित प्रोत्साहन मिलना चाहिए। जो कोई भी पुरुष इनसे विवाह करें उसे प्रेरणा, प्रोत्साहन, आदर, सम्मान तथा श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
इस कुत्सित वृत्ति का समाज में बने रहना मानव के अस्तित्व के लिए खतरा है। वेश्या संसर्गजन्य एड्स आदि अन्य भयंकर रोगों से निपटने के लिए इसकी समाप्ति आवश्यक है। जो लोग इसे कानूनी मान्यता दिलाने की वकालत करते हैं उन्हें डॉक्टर मेरी स्टोप्स का यह विचार दृष्टिगत रखना चाहिए कि आज प्रत्येक विचारशील पुरुष इस सत्य को अनुभव करता है कि इस बीमारी से ना केवल पुरुष का ही विनाश होता है और उसकी पत्नी के शरीर में भयंकर रोग घर कर लेते हैं अपितु उससे उत्पन्न बच्चों का स्वास्थ्य और अस्तित्व तक विनष्ट हो जाता है।
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