वातावरण में विविध प्रकार के संदेश संचरित हो रहे हैं।विषय की प्रासंगिकता और माध्यम के स्वरूप के अनुसार संवाददाता अपने विवेक से इनमें से संप्रेष्य संदेशों का चयन करता है। पुन: माध्यम की प्रकृति के अनुसार उनका रूपांतरण करता है और तत्पश्चात प्रसारण हेतु संप्रेषित करता है। विषय की व्यापकता से चयन की समस्या उत्पन्न होती है। संप्रेषण संदेश में लक्षित समूह का भी ध्यान रखना होता है। संप्रेषण की शैली माध्यम के अनुरूप ही रखी जाती है। माध्यम की विविधता से प्रस्तुतीकरण में अंतर आ जाता है। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के प्रस्तुतीकरण में भिन्नता होती है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी रेडियो और टीवी की प्रस्तुति में व्यापक अंतर होता है। रेडियो में तथ्यों का ध्वन्यांकन ही हो पाता है क्योंकि यह केवल श्रव्य माध्यम है। अतः इसमें सहज, सरल और बोधगम्य भाषा का प्रयोग होता है। प्रायः इसमें बोलचाल की भाषा ही प्रयुक्त होती है ताकि सभी कोटि के श्रोताओं के मस्तिष्क में शब्द सुनते ही उसका अर्थ स्पष्ट हो जाय। जटिल और दुरूह शब्दों का प्रयोग इसमें वर्जित है। श्रोताओं के पास इसमें विषय चयन की कोई स्वतंत्रता नहीं होती। विषय पसंद ना आने पर वह स्टेशन (केंद्र) बदलकर या रेडियो बंद कर संतोष प्राप्त कर सकता है।
टीवी में दृश्य कथ्य का समर्थन करता है। दृश्य-श्रव्य माध्यम होने से लोगों पर इसका प्रभाव त्वरित होता है। इसमें जो चीज दृश्य में अभिव्यक्त हो रहा है उसे अलग से व्याख्यायित करने की आवश्यकता नहीं होती जो बात दृश्य से स्पष्ट नहीं होती उसे कथन द्वारा स्पष्ट करना आवश्यक है अन्यथा प्रस्तुतीकरण सारहीन हो जाएगा। यहां क्या प्रस्तुत हो रहा है यह दर्शकों की समझ में नहीं आ पायेगा।
टीवी के दर्शकों के पास भी विषय चयन की स्वतंत्रता का अभाव होता है। रुचिकर विषय ना होने पर वह अन्य चैनलों पर चला जाता है या फिर टीवी ही बंद कर देता है।
प्रिंट मीडिया में तो सब कुछ शब्दों का ही कमाल होता है। लिखित रूप में ही यहां सब कुछ अभिव्यक्त करना होता है। इसमें भी यदि प्रस्तुतीकरण की शैली बोधगम्य और सरल होगी तो उसका प्रभाव उतना ही अधिक होगा। यही कारण है कि अखबारों की भाषा आम लोगों की समझ में आने योग्य होती है। अखबारों में विविध विषयों से संबंधित सूचना-संपन्न आलेख प्रकाशित होते हैं।
प्रिंट मीडिया के पाठकों को विषय चयन की पूरी स्वतंत्रता होती है। प्रकाशित सूचनाओं में से वह अपनी रुचि के अनुसार चयन कर ही विषय का रसास्वादन करता है। यही कारण है कि प्रिंट की प्रासंगिकता आज भी अक्षुण्ण है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते प्रचार-प्रसार से प्रिंट के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं।
इंटरनेट तो सूचनाओं का संजाल ही है। इसमें विभिन्न विषयों की व्यापक सूचनाएं उपलब्ध होती हैं। विश्व के आधुनिकतम शोध-प्रबंध भी इसके द्वारा पढ़ा, देखा और सुना जा सकता है। अब तक मीडिया के जितने भी रूप विकसित हैं उन सब में इसका प्रभाव ज्यादा होता है।
इसमें दर्शक अपनी सुविधानुसार विषय का चयन करता है और उससे तमाम अद्यतन सूचनाएं प्राप्त करता है। अतः इसमें विषय चयन की स्वतंत्रता पूर्णरूपेण है।
इस तरह, मीडिया की प्रकृति के अनुसार विषय-चयन की स्वतंत्रता निर्भर करती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें