कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

कुछ क्षणिकायें -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

               1.
आँख खुलते ही 
सपने रूठ गए, 
जो शेष थे 
अपने लूट गए,  
रिश्तों के धागे 
कमजोर थे शायद 
टूट गए! 
               2.
अपने भी 
हलचल 
देखते हैं
घर की 
चहल - पहल 
देखते हैं
क्या है 
झोपड़ी 
या 
महल 
देखते हैं
फिर 
अपना 
इरादा 
बदल देते हैं .
              3.
मौत को 
यों 
मरने 
नहीं दूंगा.
मै 
उसे 
अपनी 
जिंदगी दूंगा.
              4.
तुम 
पास 
होते हो 
तो 
तन्हाई 
नहीं होती.
यों 
तन्हाई 
में भी 
तुमसे 
जुदाई 
नहीं होती. 
               5.
ये दुश्मन ही हैं 
जो मरने की 
दुआ देते हैं.
वरना
अपने तो यहां 
ज़िंदा ही
जला देते हैं.
                 6.
यह खुशी तो 
तुम्हारी 
दुआओं का 
असर है
 वरना 
यह जिंदगी 
तो ज़हर है.
                  7.
सोचता हूं
तेरे साथ न होता 
तो कहां होता..? 
तुम जहां होते 
वहां  होता !
                 8.
सच्चे नहीं होते ‌ 
शृगाल के आंसू
घृणा भरे 
घड़ियाल के आंसू
मुख फैलाए 
व्याल के आंसू
खंजर लिए 
खल्लाल के आंसू
                9.
अगर शायर हो 
तो सच कहो;
किसी मुगालते में 
मत रहो!
              10.
                                                                      जो 
जितना 
बड़ा है
वह
उतना ही 
अकड़ा है
अपनी ही 
जाल में
उलझ गया है 
ऐसे
जैसे 
मकड़ा है।                                                                  
                  11.
जो
अपनी ही 
दुनिया में 
मस्त है 
मेरा 
ख़्याल है कि 
वह आदमी 
ज़बरदस्त है।
                   12.
दर्द को
दरिया में 
डाल के देखा
तेरी आंखों में 
असर 
कमाल का देखा
हर आंखों में
नज़र आती है 
तुम्हारी ही सूरत
हर आंखों में 
आखें डाल के देखा
                  13.
बस यों ही 
गुजर गई जिंदगी
जाना था किधर, 
किधर गई जिंदगी
                   14.
दुख नहीं 
कि 
मिट्टी में 
मिल जायेंगे,
खुश हूँ 
कि 
फूल 
बन के 
खिल जायेंगे. 
                     15.
मुरझा के 
डाली से 
जब भी 
कोई फूल 
गिरा है
मुझको 
लगा है कि 
मेरे अंदर 
कोई मरा है

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