कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

क्या कहूं -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्या कहूं 
कि
नियति यही है
जी रहा हूं वहां
जहां जीवन नहीं है
बस 
हवा में 
हिल रहे हैं 
हाथ
आंखों की रोशनी 
धुंध की मानिंद
अपनी करतब करते
पुकारते तुमको
काश! साथ आते
कुछ बातें करते
कनेर के फूलों की लाली
और गेहूं की बाली
फागुनी बयारों के 
गीत गाते
काश! 
तुम
एक बार
फिर
आ जाते
----धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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