कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

सावन जब..-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

सावन जब बादल बरसाये।
रजनी मेरी खाट भिगाये।।
दिल तो अब रोने को आये।
क्यों आज़ादी का जश्न मनायें?
कितने दशक सदियाँ बीतीं।
झोपड़ियों की आँखें रीतीं।।
सपने मन में कौन सजाये।
प्रियतम जब अपने घर आये।।
ख़्वाब लूट मसीहा बन जाते।
खुद पर ही हम ख़ूब पछताते।।
ऐसे क्यों रिश्ते पनपायें?
छलिया से कैसे बच पायें?    
            -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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