कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

भक्त हरिनाथ के भजन (भाग 2)

हिंदी-संस्कृत-मागधी के अंतरराष्ट्रीय ख्याति लब्ध साहित्यकार आचार्य दु:खहरण गिरि शास्त्री, अध्यक्ष जिला हिंदी साहित्य-सम्मेलन, जहानाबाद द्वारा प्रणीत 'जहानाबाद के साहित्य-सेवी' प्रकाशन वर्ष 1998 पृष्ठ संख्या 11 पर  भक्त कवि हरिनाथ पाठक के संदर्भ में अत्यंत ही सारगर्भित टिप्पणी है:-
"शब्दों के साधक आराधक
चिति के शोधक चिति के साधक
ललित भागवत और ललित रामायण
है जिनके सांस्कृतिक धरोहर
महाकाव्य,
जो सरस प्रीतिकर
शब्द शिल्प छन्दों  से सज्जित
जीवन के चिंतन से सुरभित 
रचनात्मक सारस्वत यात्रा
है जिनकी चर्चित सुधीजन में
वाणी की वन्दना निरत
जो गैहिक सुख से रहे विरत
वृन्दावन वासी सहज उदासी
शान्ति साधना का अप्रतिम
आलोकपुंज वह मगध मही का।"
प्रोफेसर डॉक्टर रामनिरंजन परिमलेन्दु पंडित हरिनाथ पाठक को याद करते हुए अपने निबंध 'अविभाजित गया जनपद के प्राचीन हिंदी साहित्यकार', अंतः सलिला, प्रकाशक, गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रधान संपादक डॉ रामकृष्ण, अप्रील 2007, पृष्ठ संख्या 36-37 पर लिखते हैं -'पंडित हरिनाथ पाठक (मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत 1900, सन 1843 ई. आश्विन शुक्ल षष्ठी भृगुवार - विक्रम संवत 1961 सन 1904ई.) ने श्री ललित रामायण और ललित भागवत की रचना कर रामायणी परंपरा और भक्ति प्रबंध काव्य लेखन परंपरा को नवीन मार्गदर्शन दिया।"
प्रस्तुत है भक्त हरिनाथ द्वारा रचित 'श्री ललित रामायण' से भगवान सदाशिव शंकर से संबंधित गीत (गतांक से आगे )
३.
राग विहारी। जल तीन ताल ३।पद झूमर।
उमा ब्याहि लाए निज गेह,
दिए रतिको बर काम को देह।।१।।
पति मिलिहे जहां असुर संवर
जन्म लेइ द्वारिका रुक्मणी के उदर।।२।।
उमा संग किआ बहु दिवस बिलास,
अगिन भेजा सुर शिव के पास।।३।।
लखि गिरिजा उठि गइ सरमाय,
गिरत बीज लिया अगिन उठाय।।४।।
सहि न सके जब गंगामे गिराय,
लगाए सुरसरि ताहि सरमे उठाय।।५।।
जन हरिनाथ भये कार्तिकेय देव,
तिनहिं तारकासुर दनुज बधेव।।६।।
४.
राग काफी।ताल दादरा१।पद खेमटा।
भज भोला अमोला अवढर दानी।।
आप निहंग लंग नहिं बस्तर, 
दासन को दई निधिखानी।।१।।
बाहन बैल बाघम्बर ओढ़े,
अंग विभूति है शमशानी।।२।।
पीत भंग रंग मदमाते,
लाल नयन बावर बाणी।।३।।
भाल कपाल गंग शिर शोभे,
जन हरिनाथ जगत जानी।।४।।
५ .
राग सिन्दूरा पीलो।ताल ३।पद गजल।
लखोरी बावरो योगी,
जहर औ भंग का भोगी।।
पिशाची प्रेत बैताला,
सहित नाचे ओढ़े छाला।।१।।
लपट रहि अंग अंग ब्याला,
गले नरमुण्ड का माला।।
रमाए भस्म अंगन में,
हसे उन्मत्त संगन में।।२।।
बरद बुढ़ा सवारी है,
लिए गिरिजा कुमारी है।।
धरे करशूल ओ प्याला,
अगिन का ज्योति बरभाला।।३।।
बजाते डिमडिमा बाजा,
अजब बरिआत है साजा।।
सजन हरिनाथ के नाथा,
रमे कैलाश गण साथा।।४।।
                            क्रमशः .....
प्रस्तुति: -धर्मेन्द्र कुमार पाठक




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