महाकवि हरिनाथ पाठक मगही के आदिकवि हैं। हिन्दी - संस्कृत- मागधी के सुप्रसिद्ध कवि आचार्य श्री जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा सम्पादित 'बेला' में इस संदर्भ में क्रमशः कई निबंध प्रकाशित हुए थे।आचार्य श्री की यह स्पष्ट मान्यता थी । 'कल्याण' वर्ष ५७ ,१९८३ ,दिसम्बर के अंक में स्व. डॉ. सुरेश पाठक द्वारा लिखित इनका परिचय प्रकाशित है। 'कल्याण' का विशेषांक 'संकीर्तनांक' वर्ष ६०, जनवरी १९८६, पृ. ३३४ पर प्रकाशित 'भक्त हरिनाथ का संकीर्तन - प्रेम' निबंध भी इनके सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराता है। सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता स्व. डॉ. कालिकिंकर दत्त द्वारा सम्पादित 'दि कंप्रिहेंसिव हिस्ट्री ऑफ़ बिहार' ज़िल्द २, भाग २, में इनका नाम आया है। राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना से प्रकाशित 'पंचदश लोकभाषा निबंधावली' में श्री कृष्णदेव प्रसाद ने भी इनका नाम लिया है। डॉ. नगेंद्र द्वारा सम्पादित 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में इनकी बखूबी चर्चा है। इसमें 'श्री ललित रामायण' का एक गीत 'मुरुगवा बोले विपिन में भोरे' को उद्धृत किया गया है। डॉ. रामप्रसाद सिंह द्वारा सम्पादित 'मगही साहित्य का इतिहास' में इनकी चर्चा है। इनके द्वारा सम्पादित काव्य-संग्रह 'झरोखा' में भी इनकी रचना सम्मलित है। इसतरह, महाकवि हरिनाथ बहुचर्चित हैं।
महाकवि संत शिरोमणि हरिनाथ पाठक ने भगवान शंकर के विवाह का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।दूल्हे केे रूप में भगवान शंकर को और उनकी संपूर्ण बारात को देखकर मैना की जो स्थिति होती है उसका वर्णन दर्शनीय है। भगवाान शंकर और उमा का विवाह किस प्रकार संपन्न होता है। इसका महाकवि ने बड़ा ही सुन्दर चित्र उकेरा है। प्रस्तुत दोनों गीत उनके द्वारा रचित 'श्री ललित रामायण ' से उद्धृत है।
१.
राग बिहारी। जलतीन ताल ३। पद झूमर। आये महादेव के विकट बराती, हरषि मेना परिछन को आती।।१।। लखि वर बावर ओढ़े मृगछाल, बयल बाहन संग भूत वैताल।।२।। मर्कट नयन भयानक तीन, भूषण ब्याल बिहंसे मति क्षीन।।३।। लखि बर भागि चली सब नारी, बिमन सोंचे गिरिजा महतारी।।४।। बाबर बर भूतनके नाह, करब नाहीं गिरिजा के विआह।।५।। गिरिजा बिनय जब करि मन लाय, सदाशिव के तेहि छन मन भाय।।६।। देखत भये शिव सुन्दर रूप, कोटिन काम मन मोहन अनूप।।७।। जन हरिनाथ गिरिजा वरपाइ, सुरन मुनिजन फूलन बरषाइ।।८।।
२. राग दीपक भार्या।पद सुमंगली, ताल।त्रिभुवन नाथ महादेव वरमन रंजन हे, दुलहिनी गिरिजा योग सुन्दर दुख भंजन हे।।१।।दान कएल गिरिराज उमा हिआ हरषत हेतेहिछन जय जय होत बहुत फूल बरषत हे।।२।।शिव सवदागर सेन्दुर बेंचन लावल हे, लेत बेसाह उमा दुलहिनी मन भावल हे।।३।।ज्यों महादेव निरंजन सुर मुनि गावल हे,त्यों गिरिराज कुमारी सनेह लगावल हे।।४।।मडवाहिं दुलहिनी दुलहा सखिन बीच शोभत हे,देखत रूप अनूप सकल जन मोहत हे।।५।।जन हरिनाथ उमा बर रूप निहारल हे,आनन्द मगन पुलकि तन सुरति बिसारल हे।।६।। क्रमशः ...
प्रस्तुति : - धर्मेन्द्र कुमार पाठक
संग्रहणीय प्रस्तुति।💐
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