कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

इंजोरिया में चांद (मगही कविता) -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

इंजोरिया में चांद इतरा रहल हे.
चंदनिया घूघवा सरका रहल हे.

चित चकोर के चंदा चुरा रहल हे,
बगिया में चंदनिया नहा रहल हे.

धरती अपन रूप के सजा रहल हे,
ओकर घूघवा बदरा उठा रहल हे.

मन में घुंघरू कोई बजा रहल हे,
सुरवा गीतिया के सजा रहल हे.

चंदनिया मन ही मन सकुचा रहल हे,
चांद तक-तक के मुख मुसका रहृल हे.

बदरिया चंदवा के छिपा रहल हे,
चंदनिया के मन ललचा रहल हे.


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