कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

एक गीत(पूज्य पिताश्री को समर्पित)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

आप तो यूं ही मुस्कुराते चले गए।
हम बेरहम वक्त के हाथों छले गए!

       तन्हाई का चल रहा एक नया दौर,
      टीस रहे स्वप्न जो थे कभी ढले गए।

पूज्य पिताश्री डॉ. सुरेश पाठक 

जीवन की नैया, तेरे प्यार की छैंया,
क्यों कर छिन मुझसे वक्त के पहले गए।

       आखिर आज यह नभ क्यों है इतना लाल,
        ज्यों गाल पर गगन के गुलाल मले गए!



आज तो यह हवा भी चुपचाप बह रही,
लगता है उसके ख्वाब कहीं तले गए!

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