कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

नियामक -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

नभ के 
नीले आस्तरण पर
सूर्य का
सम्मोहन!
धरा
अनायास
उसीके परितः
अनवरत
करती
दिन-रात नर्त्तन!
जड़-चेतन
सबके सब
बँधे हुए-से
सोते-जागते
अणु-परमाणु
सूक्ष्म-जीवाणु
सबका
संलयन!
फिर भी,
कोई विस्फोट नहीं.
अपितु
प्रकृति का चिर-मिलन!
जीवन
मात्र संयोग नहीं,
भोग और उपभोग नहीं,
निश्चय 
ही 
इसका 
कोई नियामक
करता है
निर्धारण!
गढ़ता है
आवरण.

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