कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

जीवन-धर्मेन्द्र कुमार पाठक




                जीवन 

कितना   अनुपम   यह   जीवन  है.
सुख-दुख  का नित मधुर मिलन है.

चंचल    मन   की    मादकता   से,
कभी   स्नेह  की    समरसता    से,
गत्वर    जीवन   का    प्रतिक्षण  है.

जैसे    कलिका    की     कोमलता,
अलि    को     भटकाती   चंचलता,
परिमल     से     भरा   तपोवन   है.

करुण    उदासी   पतझड़  की  भी,
जीवन    लाता    ऐसे     क्षण   भी,
अश्रु-हास   का   विरल   कलन   है.

जभी      खुलेंगी     चेतन     आंखें,
फैलेंगी     तब       जीवन     शाखें,
सहज     सुलभ   मेरा   भी  मन  है.

                  -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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