कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

भक्त हरिनाथ विरचित भगवान श्री कृष्ण के सोहर

कृष्ण भक्त श्री हरिनाथ पाठक 


१.
 ।।राग दीपक भार्या।।ताल।। ३।। पद सोहर।। 

धन ओही मथुरा के लोग लोगाइ बड़िभागिनि हो, 

ललना जाहां वसुदेव जनम लिन्ह देवकी सोहागिनि हो।।१।।

जिन कर भाग सराहत सुरनर मुनि जन हो, 

ललना तिन के भवन अवतार लिहल मधुसूदन हो।।२।।

भादव असित आठम दिन आधि राति रोहिणि  हो, 

ललना सिद्धि योग बुधवार वृष लग्न तन धरि मोहिनि हो।।३।।

चारभुजा शंख चक्र गदा अव कमल धर हो,

 ललना पीत वसन सब भूषण श्यामसुन्दर वर हो।।४।।

लखि वसुदेव मगन मन विनय बहुत किन्ह हो, 

ललना हरषि मातु देवकी करन जोरि वर लिन्ह हो।।५।।

छुपि जाव लालन कोइ देश अतना अरज मोर हो, 

ललना तुरतहिं कंस समर वांधि ऐंहे सुनत सोर हो।।६।।

योडर कंस के नंद गोकुल पहुंचा वहु हो,

ललना यशोदा के भइ योग माया तुरंत ले आवहु हो।।७।।

भवन भए अस कहि निज जन परिपालक हो, 

ललना जननी जनक के लखत हीं भए नर बालक हो।।८।।

ले चले एहि क्षण सुतको गगन बाजि नवबत हो, 

ललना खुलि जात बिकट केबार पहरु सब सोवत हो।।९।‌

तेजि मधुपुर वसुदेव बाहर जब आवत हो, 

ललना बढ़ि यमुना अगाध लहरि बडि धावत हो।।१०।‌।

अति अंधिआरि कारि गगन सघन घन छावत हो, 

ललना परत फूहार सुरन कुसुमन वरषावत हो।।११।।

शेश फणाछाय जात उपर जल वारत हो, 

ललना चमकत दामिनि पथ निरखत गति पारत हो।।१२।।

उतरि परे जल यमुना चरण धोइ मग दिन्ह हो, 

ललना यशोदा शय सुत धरि योग माया उठायलिन्ह हो।।१३।।

लखि नहिं कोइ एह करणी सुता लेइ आय जब हो, 

ललना आवत जात लखत हरिनाथ चरित सब हो।।१४।।१५।।

                                          -श्री ललित भागवत से


२.

 ।।राग दीपक भार्या।।ताल ३।। पद सोहर।।

देवकी अव वसुदेव परम तप भावल हो, 

ललना वैकुंठ नाथ जनम लेल आनन्द पावल हो।।१।।

।।छन्द।।

आय भादव मास कृष्ण अष्टमी बुध दिन निशा, 

र्ऋन्ज्ञरोहिणि योग हर्षण करण कौलव सुख दिशा।।१।।

।।पद।।

वृषभ लगन ग्रहगण निज भवन विराजत हो,

ललना सुरन सुमन वरषावत लखि मन गाजत हो।।२।।

।।छन्द।।

श्याम सुन्दर कमल लोचन चार भुज आयुध लिए,

शंख चक्र गदा कमल श्रीवत्स भृगुपद छबि हिए।।२।।

।।पद।।

श्रवण कुंडल मणि जडित अलक मुख झलकत हो, 

ललना कंकण अंगद करधनि उर हार हलकत हो।।३।।

।।छन्द।।

देवकी वासुदेव लखि अवतार नारायण धरे,

सकल शोच विसारिं दोउ कर जोरि बहुत विनय करे।।३।।

।।पद।।

कंस भूआल के मोहि डर छुपि जाव कोइ देश हो,

ललना जाने न पावे असुर खल कीजै नाथ सोइ भेश हो।।४।।

।।छन्द।।

किन्ह हरि अनुशाश गोकुल नन्दघर धरि आइए,

योग माया जन्म लइएह निशि तुरंत ले आइए।।४।।

।।पद।।

अंक उठाय शूर नन्द ब्रज पहुंचावल हो,

ललना यशोमति दुहिता जगत माय मधुर पुर लावल हो।।५।।

।।छन्द।।

शोइ रहे निशि जन चराचर कोइ नहीं पहचानहीं,

एक जन हरिनाथ जागत जात आवत जानहीं।।५।।१६।।

                                       - श्रीललित भागवत से

३.

 ।। राग दीपक भार्या ।।ताल ३ ।। पद सोहर ।।

श्रीकृष्ण जनम गुण वर्णन कौन करत कवि  हो,

ललना चंद्र विमल कुल कमल विकासी उदित रवि हो ।।१।।

ब्रह्म परार्द्ध द्वितीय श्वेत बराह कलप जब हो,

ललना अष्टाविंशति युग द्वापर संध्या समय तब हो।।२ ।। 

एक पंच बिंश वर्ष शेष संवत ईश्वर हो,

ललना भादव कृष्ण अष्टमि तिथि दक्षिण दिनकर हो।।३।।

बुधवार नक्षत्र रोहिणि हर्षण योग निशि काल हो,

ललना कौलव करण वृष लगन जनमे कृष्ण जन पाल हो।।४ ।।

क्षत्रिय वंश के अंतर  वैश्य पर्जन्य सुत हो,

ललना नन्द घरणि यशोदातन प्रकटे गोकुल पूत हो ।।५ ।।

वृषभ भवन चंद्रकेतु केशरि दिनकर नाथ हो, 

ललना युवती भवन बुध तौलि शनिश्चर गुरु साथ हो ।।६।।

वृश्चिक राहु, मकर भौम, मीन वृहस्पति हो,

ललना जन्म समय ग्रह आनन्द राजत शुभगति हो।।७।।

मरण शपन  सब देखत असुर कुमति क्रूर हो,

ललना हरिजन सजन सुमंगल निरखत तिहु पूर हो।।८ ।।

जनम लिहल योगमाया सकल जन बस किन्ह हो,

ललना पुर ग्राम आकर ब्रजवन जन को शोलाय दिन्ह हो।। ९ ।।

मथुरा पधारी कंसासुर भय दे गगन गेल हो,

ललना प्रात समय नन्द लाल जनम लखि मुद भेल हो।।१०।।

जन्म सुमङ्गल नन्दहिं जाइ शुनाइ सखि हो,

ललना हरषि महर सूतिका गृह सुअन बदन लखि हो ।।११ ।। 

आनन्द सागर उमड़ि बहो हय महावन हो, 

ललना बहुत सुमन झरि लाए सुरन हरि नाथ जन हो ।।१२।। १२।।

                            - श्रीललित भागवत से

४.

 ।। राग दीपक भार्या ।।ताल ३ ।। पद सोहर ।।

यशोदा देखत शुभ शगुन सदा निशि वासर हो,

ललना जबते गरभ रहे श्याम सजन करुणाकर हो ।।१ ।।

सब सुख संपति आवत घर घर छावत हो, 

ललना आनन्द उदधि उमड़ि आय गोकुल बहावत हो।।२।।

यशोदा के मुख देखि नन्द महर हिआ हरषत हो,

ललना विना हो सुअन मन कातर सुख जनु बरषत हो ।।३।।

एक मास दोसर तिसर मास चौठा पंचम मास हो,

ललना छठवाँ अव सतवाँ यो बीतल अठवाँ नवम मास हो ।।४।।

दसवाँ यो आएल भादव असित आठम दीन हो,

ललना आधि राति यशोदा शयन सोवे सखि सब दगरिन हो।।५।।

भासत नभ नाहि उडुगण मगन मुनिन जन हो,

ललना गरजत चमकत चहु ओर असित सघन घन हो।।६।।

पूर्व उदय लेल चंद गोकुल नन्दनन्दन हो,

ललना त्रिभुवन हो गेल आनन्द निरखि जगबंदन हो।।७।।

सब गुण आगरि नागरिसोहर गावत हो,

ललना सुरपुर वासिन हरषि सुमन वरषावत हो।।८।।

गणक गणत शुभ लगन महर घर भावत हो,

ललना गायक पाठक वाचक जाचक आवत हो।।९।।

छिलय न नार हठिला वारि दगरीन हठ किन्ह हो,

ललना परम उदार महर दानि मोतिमाल गले दिन्ह हो।।१०।।

जय जय करहीं सकल जन जिओ यशोमति सुत हो,

ललना बहुत दिनन पर दिओ नाथ शुभ गुण युत पूत हो।।११।।

योजस जाचत सोइ सोइ नन्द महर देल हो,

ललना जन हरिनाथ आनन्द निरखि मुख सुख लेल हो।।१२।।१३।। 

                                                     - श्रीललित भागवत से              

                                           प्रस्तुति :-धर्मेन्द्र कुमार पाठक 


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोहब्बत -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्यों तुम रूठ गई? -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

What to do after 10th (दसवीं के बाद क्या करें)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक