कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

आत्मनिर्भर भारत : स्वतंत्र भारत

  
 आत्मनिर्भर भारत : स्वतंत्र भारत

आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास का प्रतिफल है। दूसरों पर अत्यधिक  निर्भरता परतंत्रता को जन्म देती है। आत्मनिर्भरता स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करती है। इसके बिना  हम  लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते। किसी भी राष्ट्र की सफलता उसकी आत्मनिर्भरता की  क्षमता से आंकी जा सकती है। जो राष्ट्र जितना ही आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होगा वह उतना ही विकसित और शक्तिशाली होगा। अतः हमें अपने देश को आत्मनिर्भर बनाने का भरपूर प्रयास करना चाहिए।
हमारा राष्ट्र भारत एक विकासशील देश है। इसके विकास की अपार संभावनाएं हैं। यहाँ  प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ मौजूद हैं। यह प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न एक सक्षम राष्ट्र है। इसकी  प्राकृतिक छटा निराली और मनोहारी  है। आज आवश्यकता है, इसके प्राकृतिक संसाधनों को समुचित  और सुनियोजित ढंग से उपयोग करने की। 
हमारे देशवासियों का बौद्धिक स्तर भी उच्च श्रेणी का है। यहां के लोग कर्मठ और दयालु हैं । हमारे पास समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक  विरासत है। यह  संपूर्ण विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां का अध्यात्मिक संदेश 'वसुधैव कुटुंबकम्'  सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अनुकरणीय है। पूरी पृथ्वी  को एक परिवार मानने  की अवधारणा हमारे देश की आध्यात्मिक चिंतन-धारा को एक विस्तृत आयाम देती   है। हमें अपनी विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प  होना चाहिए।
स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने में आत्मनिर्भरता का महत्वपूर्ण योगदान होता है। स्वतंत्रता में अनुशासन का भी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। यह एक राजनीतिक दर्शन है। इसमें कोई भी राष्ट्र  अपने ही द्वारा बनाए गए नियमों से अनुशासित होता है। इस तरह  विकसित तंत्र से अनुशासित होकर हम स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देते हैं। इसमें अन्य कोई भी बाहरी शक्ति का प्रत्यक्ष या परोक्ष  प्रभाव नहीं होता है। राष्ट्र अपने विकास के लिए स्वयं संरचनागत ढांचा विकसित करता है और उस पर सुनियोजित ढंग से अमल भी करता है। इससे राष्ट्र का शासन और प्रशासन तंत्र मजबूत होता है।
राष्ट्र निर्माण में उसके नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नागरिकों की कर्मठता और योग्यता राष्ट्र को नया स्वरूप प्रदान करती  है। देश के चतुर्दिक विकास में इसकी अहम भूमिका होती है।  इससे हमारी संकल्प शक्ति को सुदृढ़ता  प्राप्त होती है ।
आत्मनिर्भरता आर्थिक स्वतंत्रता का भी  द्योतक है। हालांकि इसका एक विस्तृत और व्यापक अर्थ भी है। राष्ट्र के लिए सुरक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी और  बेरोजगारी इन सभी से मुक्ति ही इसका अभिप्राय है। देश के नागरिकों को हर क्षेत्र में शोषण से मुक्ति भी इसमें समाहित है। इस तरह, आत्मनिर्भर भारत एक श्रेष्ठ भारत की ओर अग्रसर होगा। आइए, हम सब मिलकर इस में अपना-अपना सर्वोत्तम  योगदान सुनिश्चित करें।
                                              -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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