कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

श्रीराधा जी के जन्म का सोहर


श्रीराधा रानी  के आराधक भक्त शिरोमणि श्री हरिनाथ पाठक द्वारा रचित 'श्री ललित भागवत' से एक सोहर प्रस्तुत है :

।। राग दीपक भार्या।। ताल ३।। पद सोहर।।  

श्वेत वाराह कलप आज द्वितीय परार्ध आय हो,
ललना विश्वावसू वर संवत भादव सित भाय हो।।१।।

अष्टम तिथि गुरुवासर युगदंड शेष निशि हो,
ललना राधा नक्षत्र लगन सिंह अरुण उदय दिशि हो।। २।।

श्री महिभान सुअन वृषभान घरणि घर हो,
ललना कुलदीप कन्या जनम लेल भुवन प्रभाकर हो।। ३।।

दिनकर तन गृह धन घर बुध राहु राजत हो, 
ललना सहज भवन भृगु चंद्र, विपक्ष भौम भ्राजत हो।। ४।।

सप्तम शनिश्चर, केतु अष्टम, गुरु द्वादश हो,
ललना सकल सुमङ्गल सूचक उदय दिशा दश हो।। ५।।

त्रिबिध पवन तेहि क्षण सुर फूल वरषावत हो,
ललना गणक पुरोहित लगन बिचारत आवत हो।। ६।। 

मागध सूत विरद जन हर्ष बढ़ावत हो,
ललना विमल विशाल सुवंश सुयश सब गावत हो।। ७।। 

सुनत नगर नर नागरि हरषत धावत हो,
ललना छिरकत हरदी अगर दधि कीच मचावत हो।। ८।। 

लपटत पिछलत गिरत हसत हरषावत हो,
ललना मधुर सुरन झंझकार सोहर मिलि गावत हो।। ९।।

नार छिलाइ बधाइ हठिली वारि दगरीन हो,
ललना गजवाजि डोली भूषण पट रतन बहुत लीन हो।। १०।।

जाचक यो जस जाचत अधिक दिवावल हो, 
ललना भोजन भूषण वसन अभार लगावल हो।। ११।। 

 पठइन नौआ महीभान जाइ शुनावल हो,
ललना जन्म लिहल कुलदीप सुवंश बढ़ावल हो।। १२।। 

सूरभान गृह नानिहाल जनम शुनि पावल हो,
ललना साजि सुमङ्गल पितु बृषभान पठावल हो।। १३।।

 जन हरिनाथ सुनत आय रावली शोहावन हो,
ललना हठ करि लिओ वरदान लली को खेलावन हो।। १४।। ४१।।

                                प्रस्तुति : धर्मेन्द्र कुमार पाठक.    



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