कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

चाँद की चाँदनी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक



      चाँद की चाँदनी 


देखता     रहा    हूँ   चाँद   की   मैं   चाँदनी ! 

तारकों    के    मध्य   रौशनी    उन्मादिनी !! 


नभ   से  उतर  रहीं   प्यार   की   ये   रश्मियाँ, 

हवा   में   तैर   रहीं    सुगंध    की   तितलियाँ, 

मन  उपवन में सजे   हैं   नवीन  सुख - स्वप्न,

स्वर्णिम पलकों पर  अपलक चिर निवासिनी !


जहाँ   स्नेह - मिलन   की   होती   है    लालसा,

अरुण-अरुण   अधरों   पर   तीव्रतम   पिपासा,

करवटें     बदलती      हैं    यादों    की   घड़ियाँ,

प्रतिपल  की   मधु - मादकता  भी   सुहासिनी !


आत्मीय  क्षणों  में  सहज - मुक्ति   की   चाहत,

सरस   स्नेही    मन   की    आतुर    छटपटाहट,

शांत,  स्निग्ध,  सौम्य,  नील गगन की  खींचती, 

चंचल    चारुता    ज्यों     रागों    की    रागिनी !


                                      -धर्मेन्द्र कुमार पाठक 







 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोहब्बत -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्यों तुम रूठ गई? -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

What to do after 10th (दसवीं के बाद क्या करें)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक