कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

एक लड़की भीगी-भागी-सी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

 

बस एक तन्हाई -सी थी। झील की कल-कल ध्वनि रोमांचित कर रही थी। जंगल और पहाड़ों के बीच में झील की सुंदरता देखते ही बनती थी। मनोहर प्राकृतिक छटा मन को लुभा रही थी। मैं सपनों में खो-सी गई थी। मन में कई ख्याल आ रहे थे। नदी के नीले पानी पर पसरी हुई चांदनी गजब ढा रही थी। लगता था आसमान से मोतियों की लड़ियां  झील को चंद्रहार पहना रही हों! मैं बेतहाशा दौड़ी चली जा रही थी। मेरी पाजेब की त्रिगुण  झनझन प्रतिध्वनि हवा में घुलकर नीरवता तोड़ रही थी। मन करता था कि जोर से चिल्लाऊँ ! लेकिन मैं यहाँ  चिल्ला भी नहीं सकती थी क्योंकि ऐसा करने पर पकड़े जाने का खतरा था। मेरे मन को डर ने जकड़ रखा था। लगता था कि कोई मेरा पीछा कर रहा है -चोर, लुटेरे, गुंडे, हत्यारे और पता नहीं क्या-क्या...। डर के मारे शरीर कांप रहा था। इतनी बारिश में भी होंठ  सूखते जा रहे थे। बारिश तेज होती जा रही थी। मेरा दुपट्टा झुरमुट में बार-बार फंस जाता था। कीड़े-मकोड़े उसमें लिपट जा रहे थे। उसे देख कर घिन आ रही थी लेकिन इसके सिवा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था। मेरी पसंद की लाल चुनरी बेतरतीब हो गई थी। उसके किनारे के कचूमर निकल गए थे। मुझे उसकी दशा देखकर रोना आ रहा था। मैंने उसे कितने शौक से खरीदा था। मुझ पर वह फबती भी बहुत थी। उसमें सजकर दुल्हन की तरह मैं खिल उठती थी।सभी लोग मेरी सुंदरता की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। मैं भी मन में फूले न  समाती। यह  चुनरी मुझे बहुत प्यारी थी; परंतु, आज मुझे इसे संभालने की भी सुध नहीं थी। एक अनजाने भय से मैं घबरा रही थी। मेरा एक कदम भी चलना दूभर हो रहा था। मेरी सांसे फूल रही थीं।
.. इतने में.... अचानक देह में सिहरन-सी हुई। मैं तो जैसे छुईमुई बन गई। एक जादुई छुअन का एहसास मेरे तन-मन को बेसुध किये जा रहा था। लग रहा था जैसे तन-बदन में आग लग रही हो! मैं कितनी प्यासी थी! मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। मैं पीना चाहती थी- जीवन का आनंद! ...जीवन का मधुरस! मैं आनंद के महासमुद्र में गोते लगाना चाह रही थी। मैं ख़ुशी से  ऐसे मिलना  चाह रही थी जैसे नदी समुद्र से मिलती है। फिर तो नदी समुद्र ही बन जाती है।
आत्मा और परमात्मा का मिलन भी तो ऐसे ही होता है ना ! मुझे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था। यह क्या है? मैं क्यों पगली जैसी प्रलाप कर रही हूं? मैं किसके इंतजार में इधर से उधर भटक रही हूँ ? बार-बार यह प्रश्न मेरे तन-मन को झकझोर रहा था। मुझे इसका कोई उत्तर समझ में नहीं आ रहा था।....या,... शायद......  इसका उत्तर मैं समझने की कोशिश ही नहीं कर रही थी। मेरे मन में एक धूंध-सा छाया था। ऐसा लगता था मेरे जीवन में एक बहुत बड़ा खालीपन है। मैं इसे पूरा करना चाहती थी। मैं स्वयं को संपूर्णता में देखना चाहती थी। मैं वह सब कुछ पा लेना चाहती थी जिसकी मैं कल्पना करती थी। यह सब पाने के बाद शायद मुझे सार्थक होने का एहसास हो! जीवन की संपूर्णता का एहसास कर ही  मैं रोमांचित हो रही हूँ ।
भागते-भागते मैं एक गुफा में पहुंच गई। गुफा की बनावट देख मैं आश्चर्य चकित हो गई। मुझे ऐसा लगा कि मैं यहां पहले भी बहुत-बार आ चुकी हूँ । गुफा का प्रत्येक  कोना मुझे परिचित-सा लगा। अब मुझे कुछ शांति-सी मिली। मेरे मन का भय जाता रहा। मैं गुफा के   रचना-सौंदर्य में डूबने-उतराने लगी। दरअसल, मैं महाराष्ट्र के औरंगाबाद में अजंता गांव के निकट स्थित गुफाओं में पहुँचकर उसकी मनोहारी छटा को निहार रही थी जिसे 'अजंता की गुफाओं' के नाम से जाना जाता है। इनका निर्माण लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व हुआ है।अजंता की गुफाएं घोड़े की नाल जैसी आकार की है। चट्टानों को काटकर इसे बहुत ही सुंदर आकार दिया गया है। पहाड़ पर 26 गुफाओं का एक अनूठा संग्रह है।1983 ई. में  यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। ये  गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से उत्तर में  लगभग 105 किलोमीटर  की दूरी पर स्थित है। ये  गुफाएं भित्ति-चित्रकला के लिए प्रसिद्ध हैं। इसकी खोज ब्रिटिश सेना की मद्रास रेजीमेंट के एक सैन्य अधिकारी जॉन स्मिथ ने 1819 ईस्वी में की थी। भारत में यह सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यहाँ  विश्व के सभी कोने से बड़ी संख्या में प्रत्येक वर्ष पर्यटक घूमने आते हैं। इन गुफाओं की आकर्षक कलात्मकता और सुंदरता मन को शांति और सुख से भर देती है। इसे देख कर मन में एक विचित्र तरह की अनुभूति  होती है जिसका  शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।
यह बौद्ध गुफा है। इसमें बौद्ध धर्म की कलाकृतियां अंकित है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका निर्माण दो चरणों में किया गया है। पहले चरण में सातवाहन शासकों ने इसके निर्माण में अपना योगदान दिया। बाद में वाकाटक शासक वंश के राजाओं ने भी इस कार्य को आगे बढ़ाया और इसके निर्माण में सहयोग दिया। पहले चरण का निर्माण दूसरी शताब्दी के समय और दूसरे चरण का निर्माण 460 से 480 ईसवी के मध्य हुआ ऐसा माना जाता है। पहले चरण में 9, 10, 12 और 15A  की गुफाओं का निर्माण हुआ। दूसरे चरण में 20 गुफा मंदिरों का निर्माण किया गया। पहले चरण का संबंध बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा से माना जाता है। इस चरण की खुदाई में भगवान बुद्ध के स्तूप से संबंधित सामग्री प्राप्त हुई है। दूसरे चरण की खुदाई लगभग तीसरी  शताब्दी के बाद की गई थी। इस चरण का संबंध बौद्ध धर्म की महायान शाखा से माना जाता है। कुछ इतिहासकार इस चरण का संबंध वाकाटक शासक से भी मानते हैं। इसका नामकरण  वाकाटक वंश  के शासक के नाम पर पड़ा है।वाकाटक वंश के वसुगुप्त शाखा के शासक हरिषेण (475-500 ईसवी) के मध्य वराह मंत्री ने गुफा संख्या 16 को बौद्ध संघ को दान में दिया था।अजंता की गुफाओं में 200 से 650 ईसवी के बीच की बौद्ध धर्म से संबंधित कहानियों को उत्कीर्ण किया गया है। गुफा संख्या 17 के चित्र को 'चित्रशाला' कहा गया है। इसका निर्माण हरिषेण नामक एक सामंत ने कराया था। यह गुफाएं जातक कथाओं के माध्यम से भगवान बुद्ध के जीवन की घटनाओं को दर्शाती हैं।अजंता की गुफाओं का निर्माण इतनी जटिलता और खूबसूरती से किया गया है कि वे लकड़ी पर की गई नक्काशी के समान लगती है।
इन गुफाओं में भारत की प्राचीन चित्रकला और मूर्तिकला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है। वस्तुत: अजंता की गुफाएं  बौद्ध मठ या स्तूप हैं। यह बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान था। यहाँ  रहकर वे अध्ययन और प्रार्थना करते थे।
अजंता में कुल 30 गुफाएं हैं। यहां 24 बौद्ध विहार और 5 हिंदू मंदिर है। गुफा संख्या 1,2,4, 16 और 17 बहुत ही सुंदर है। गुफा संख्या 26 में बुद्ध की प्रतिमा स्थित है। इनकी खुदाई यू आकार की खड़ी  चट्टान से  स्कार्पियो  जैसे आकार में  की गई है जिसकी ऊंचाई लगभग 76 मीटर है। इन गुफाओं  में सुंदर चित्र  और बड़ी-बड़ी खिड़कियां है।
मुझे गुफाओं में चित्रित भाव-भंगिमाओं की अनुभूति -सी हो रही थी। लग रहा था मैं सपनों की मदमस्त दुनिया में खो जाऊँ! मैं अपने सपने में ऐसे खोना चाहती हूँ कि मुझे कोई जगाने न आये! मैं निश्चिंत सुख की नींद में सोना चाहती थी। 
एलोरा की पाषाण मूर्ति भी मुझसे बात करती प्रतीत हुई। ऐसा लगता था मानो वह मेरा सारा दुख-दर्द सुनने को तैयार थी। मैं उसकी सुंदरता निहार कर अपने आपको तरोताजा महसूस कर रही थी।
मैं एलोरा की  गुफाओं को देखकर निहाल हो रही थी। इन गुफाओं की कलात्मकता का सहज आकर्षण मैं  महसूस कर रही थी। एलोरा का मूल नाम वेरुल है। इन गुफाओं को 'वेरुल लेणी' के नाम से भी जाना जाता है।  यह एक पुरातात्विक स्थल और महाराष्ट्र के औरंगाबाद से उत्तर-पश्चिम में  30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे कलूचरी, चालुक्य और राष्ट्रकूट शासकों  द्वारा निर्मित किया गया था। यह  भारतीय प्रस्तर-शिल्प- स्थापत्य-कला का अद्भूत  नमूना है। यहां 34 गुफाएं हैं जो ऊर्ध्वाधर खड़ी चरणार्द्रि का एक फलक हैं । यहाँ  हिंदू, बौद्ध और जैन मंदिर हैं। यह पांचवी और दसवीं  शताब्दी के मध्य बने प्रतीत होते हैं। यहाँ  12 बौद्ध गुफाएं (1-12), 17 हिंदू गुफाएं (13-29) और 5 जैन  गुफाएं (30-34) हैं । इन गुफाओं का विस्तार 2 किलोमीटर तक है। इन्हें बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों से काट कर बनाया गया है। इनके निर्माण का समय 600 ई. से 1000 ईसवी के मध्य है। एलोरा की गुफाएं व्यापार मार्ग  के अत्यंत निकट है। अतः इसकी ज्यादा उपेक्षा नहीं हो पाई। एलोरा विश्व का सबसे बड़ा एकल एकाश्म उत्खनन (Largest Single Monolithic Excavation)  विशाल कैलाश (गुफा 16) के लिए विश्वविख्यात है। 
स्वप्न की दुनिया भी बड़ी निराली होती है। जाने कैसे -कैसे भावबोध मन को आलोड़ित करते रहते हैं। अजंता-एलोरा  की मनमोहक मादक तस्वीरें मन में गहरे छाप छोड़ जाती हैं।मानव-मन को यह रेखांकित करती -सी लगती हैं। यह सच जिससे हर कोई बचना या छुपाना चाहता है। मानव का सृजन ही इससे हुआ है। इसमें परमात्मा की सृजनात्मकता का रहस्य छिपा है। काम कोई गर्हित विषय नहीं। अभिसार के एकांतिक क्षणों में भी सौंदर्य का प्रस्फूटन मानव मन को आनंद से चमत्कृत कर सकता है। यह यहाँ सहज द्रष्टव्य है।नग्नता और अश्लीलता में भी सौंदर्य का चरमोत्कर्ष दर्शनीय हो सकता है। तभी तो अजंता-एलोरा की गुफायें पवित्रतम मानी जाती हैं। बस अपनी दृष्टि को परिमार्जित करने की आवश्यकता है। ये गुफायें हमारे अंतर्मन की उत्कंठा को शांत करती प्रतीत होती हैं।
सपने में हमारी शिक्षा का असर होता है क्या? क्या हमारा ज्ञान तब भी साथ देता है जब हम गहरी नींद में सोये हों? इस योगमाया ने किसको छोड़ा है मन तो सबका एक-सा है। फिर अलग होने का स्वांग क्यों रचें? काश! यह सब सच होता। मगर यह तो एक सपना था  जिसमें मैं गोते लगा रही थी।                                                                                                                                                                                               
(स्रोत: Google Wikipedia.org) 

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