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कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

मिलती है -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

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 मिलती   है वह   तो   तन्हाई    भरी   रात    में   मिलती   है. यह   जिंदगी   यहाँ   तो   हर  रोज   बदलती   है. किसी  के  साथ छोड़ने  से सफर रुकता  है  क्या, चलते   रहने   से   मंजिल  तो  जरूर  मिलती  है. जीने  का  मजा  तो  है  कि  हरदम  मजे  में  रहो, दुखी  होने  से  दुख  में   राहत  कहाँ   मिलती   है. तुम यदि अपने दिल की सुनती तो जरूर मिलती, यों  भी  सपने  में  तू प्रतिदिन  मुझसे  मिलती है. सपनों  की  उड़ान   को  कोई   रोक  नहीं  सकता, मेरे   संग-संग   तू    हर    रोज   उड़ा   करती   है. यह  दुनिया  तुझ...

नीले नभ से -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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नीले नभ से नीले नभ से  यह स्वर  फूटे-                  नहीं    प्रेम  का   बंधन  टूटे! कभी  अंग  को   रक्त न  रंगे, अब मृत्यु  नृत्य  करे न  नंगे, शांत     बहो  हे   पावन   गंगे,                  प्रमोद -घट  नित  भरें  वधूटे! चतुर्दिक   हो  चारु   हरियाली, अधरों पर  खुशियों की  लाली, मधुर   मुस्कान  प्यारी-प्यारी,                 मन   गाये   औ'  मस्ती   लूटे! अपनत्व  भरा  सबका  मन हो, निश्छल निर्मल सबका मन हो, प्रेमल पुलकित  जीवन-धन हो,                कभी   न   कोई   हमसे   रूठे!               ...

तुम मिले! -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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                                  तुम मिले! जिन्दगी की  धूप-छाँव में  तुम मिले! सरस स्नेह के लघु गाँव में तुम मिले!   दुःख-दर्द   का  सागर  दिल में  उमड़ा, पीड़ा   के   तेज  बहाव  में  तुम  मिले! इतना  सरल   नहीं  तुझे  भूल  जाना, जीवन के  हर  मझधार में  तुम मिले! विधि  को तो  एक दिन रूठना ही  था, मन  के  उस  अलगाव  में  तुम  मिले! जब  भी   लुभाती  है   रंगीन   दुनिया, बहके  मन के  भटकाव में  तुम  मिले! अब अगर तुम न मिलते तो क्या होता, उलझन  के  इस उलझाव में तुम मिले! अब तो  तुम  ही  तुम  हो मैं कहीं  नहीं, अन्तर्मन  के  हर  भाव  में  तुम  मिले!                     ...

जलन -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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जलन  है  तो  जरूर  आग  होगी. तुषार  में  जलन क्या खाक होगी. जब  भी  मिले  हम प्यार से मिले, तेरे   सीने   में   वही   धाक  होगी. बहुत  कठिन  है   मुझे  भुला देना, तेरे     साथ     मेरी     याद   होगी. मेरी   बात   तुझे   खलती  है  क्यों, जरूर    कोई    और    बात   होगी. इस    तरह   तो  कोई  डरता  नहीं,  कुछ  कमी  तो  अवश्य साथ होगी.                 -धर्मेन्द्र कुमार पाठक. 

एक लड़की भीगी-भागी-सी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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  बस एक तन्हाई -सी थी। झील की कल-कल ध्वनि रोमांचित कर रही थी। जंगल और पहाड़ों के बीच में झील की सुंदरता देखते ही बनती थी। मनोहर प्राकृतिक छटा मन को लुभा रही थी। मैं सपनों में खो-सी गई थी। मन में कई ख्याल आ रहे थे। नदी के नीले पानी पर पसरी हुई चांदनी गजब ढा रही थी। लगता था आसमान से मोतियों की लड़ियां  झील को चंद्रहार पहना रही हों! मैं बेतहाशा दौड़ी चली जा रही थी। मेरी पाजेब की त्रिगुण  झनझन प्रतिध्वनि हवा में घुलकर नीरवता तोड़ रही थी। मन करता था कि जोर से चिल्लाऊँ ! लेकिन मैं यहाँ  चिल्ला भी नहीं सकती थी क्योंकि ऐसा करने पर पकड़े जाने का खतरा था। मेरे मन को डर ने जकड़ रखा था। लगता था कि कोई मेरा पीछा कर रहा है -चोर, लुटेरे, गुंडे, हत्यारे और पता नहीं क्या-क्या...। डर के मारे शरीर कांप रहा था। इतनी बारिश में भी होंठ  सूखते जा रहे थे। बारिश तेज होती जा रही थी। मेरा दुपट्टा झुरमुट में बार-बार फंस जाता था। कीड़े-मकोड़े उसमें लिपट जा रहे थे। उसे देख कर घिन आ रही थी लेकिन इसके सिवा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था। मेरी पसंद की लाल चुनरी बेतरती...

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