कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

नीले नभ से -धर्मेन्द्र कुमार पाठक


नीले नभ से


नीले नभ से  यह स्वर  फूटे-
                 नहीं    प्रेम  का   बंधन  टूटे!

कभी  अंग  को   रक्त न  रंगे,
अब मृत्यु  नृत्य  करे न  नंगे,
शांत     बहो  हे   पावन   गंगे,
                 प्रमोद -घट  नित  भरें  वधूटे!

चतुर्दिक   हो  चारु   हरियाली,
अधरों पर  खुशियों की  लाली,
मधुर   मुस्कान  प्यारी-प्यारी,
                मन   गाये   औ'  मस्ती   लूटे!

अपनत्व  भरा  सबका  मन हो,
निश्छल निर्मल सबका मन हो,
प्रेमल पुलकित  जीवन-धन हो,
               कभी   न   कोई   हमसे   रूठे!
                           
                             -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.


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