कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

मिलती है -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.


 मिलती   है

वह   तो   तन्हाई    भरी   रात    में   मिलती   है.
यह   जिंदगी   यहाँ   तो   हर  रोज   बदलती   है.

किसी  के  साथ छोड़ने  से सफर रुकता  है  क्या,
चलते   रहने   से   मंजिल  तो  जरूर  मिलती  है.

जीने  का  मजा  तो  है  कि  हरदम  मजे  में  रहो,
दुखी  होने  से  दुख  में   राहत  कहाँ   मिलती   है.

तुम यदि अपने दिल की सुनती तो जरूर मिलती,
यों  भी  सपने  में  तू प्रतिदिन  मुझसे  मिलती है.

सपनों  की  उड़ान   को  कोई   रोक  नहीं  सकता,
मेरे   संग-संग   तू    हर    रोज   उड़ा   करती   है.

यह  दुनिया  तुझे   मुझसे   मिलने  नहीं  देती  है,
वैसे प्रतिदिन तुम  मुझसे  मिलने को मचलती है.

तुमको   देख  कर  खुशी   चेहरे  पर  छलकती  है,
मगर यह खुशी मुझको हर रोज  कहाँ  मिलती है.

                                      -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोहब्बत -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्यों तुम रूठ गई? -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

What to do after 10th (दसवीं के बाद क्या करें)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक