कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

'राधे राधे' बोल लो -धर्मेन्द्र कुमार पाठक



        प्रेम   से  'राधे -राधे'     बोल   लो.

श्रीकृष्ण     बसेंगे      तेरे   मन  में.
मन   के  ही    मधुमय  वृंदावन  में.

         आज तुम  अन्तर के पट  खोल लो.
 
अंतरस्तल    के    वन  -कानन  में.
तेरे   परिमल  मन  के  मधुवन  में.

       अपनी   प्रेम  की  गठरी   खोल लो.

प्रकाश     भरेंगे      जीवन  -वन   में.
भक्ति   भरेंगे    हिय  के  आंगन  में.

         चाहे   मोल  इसका   अनमोल  लो.

वंशी  मधुर   बजेगी  कण -कण  में.
अप्रतिम  सुख  बरसेगा  जीवन  में.

        तुम  अभी  तोल  सको तो तोल लो.

                   -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोहब्बत -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

क्यों तुम रूठ गई? -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

What to do after 10th (दसवीं के बाद क्या करें)-धर्मेन्द्र कुमार पाठक