कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

सपनों के तंतु पर -धर्मेन्द्र कुमार पाठक


सपनों के  तंतु पर  नित्य थिरक रहा मन है.
उपवन में  मदिर-मदिर गूंज  रहे अलिगन हैं.

भाव  का  बसंत  यहां  छेड़  रहा  सरगम है.
कोयल की  कूक  से  गूंजित सदा मधुवन है.

जाने  क्यों   स्वयं  को  तू  साजती  सँवारती.
प्रेम  की   दीवानी  बन  पिया  को  पुकारती.

अचानक   उंगलियों   को   दातों  से  दाबती.
कोई   अब   देख  ना  ले  इसको हो  ताड़ती.

चंचला -सी आज तुम प्रिये चमकती हो क्यों?
मेरे  हृदय में  प्रतिपल  तुम दमकती हो क्यों?

क्यों  मुझे  दूर  से  हो तुम अपलक निहारती.
दिल  में   उतारें   हम   नित  तुम्हारी  आरती.

                              -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.




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