कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

बनकरमूठ पकड़े हैं -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

हम सब बड़े हैं
बे पेंदी के घड़े हैं
यह मत पूछो कि
कितनी बार लुढ़के हैं
जहां से चले थे वहीं पर खड़े हैं
अपनी ही बात को पकड़े हैं
बात बात में टूट जाते ऐसे
जैसे शीशे के टुकड़े हैं
उस पर भी लानत यह कि
आज तक अकड़े हैं
बनरमूठ पकड़े हैं
मन  न रंग सके
रंगे केवल कपड़े हैं

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