कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

वक्त आ गया -धर्मेन्द्र कुमार पाठक


अब वक्त आ गया है सब कुछ खोने की.
फिक्र  नहीं  कुछ  होने  या  ना  होने की.

तुम जहां भी  रहो जग में  सलामत रहो,
जरूरत   नहीं   अब  है  रोने -धोने  की.

सांसों  का  सफर  एक  रोज  थमेगा ही,
 गम  नहीं  साथ  होने  या  ना  होने  की.

सफर -सा मजा कभी मंजिल में  नहीं है,
कभी  सोचा  ही  नहीं  सुख  से सोने की.

कभी  कहीं  रुका भी तो कुछ चाहा नहीं,
फिक्र  हमेशा  रही  कुछ-न-कुछ देने  की.

                          -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

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