कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

उन्हीं सवालों में -धर्मेन्द्र कुमार पाठक


एक  बार   फिर  हम   उन्हीं  सवालों   में  घिर  गए.
एक  जैसे  ही  लोग  मिले  हम   जिधर-जिधर  गए.

वही  अजनबी  लोग  मुझे  तो  हर  जगह मिले जब,
अपना गांव-घर  छोड़कर हम जिस -जिस शहर गए.

थोड़ा -सा  भी  कहीं पर  जब प्यार भरा  दिल मिला,
हम  तो  वहीं  दिल   मिलाने  को  अपना  ठहर  गए.

पर   दरिंदगी   का   देखा   वही   पुराना  सिलसिला,
कुछ पल सोच कर ही  जिसे अब तो हम  सिहर गए.

हर   जिस्म   में   बेजान -से  वहां  सभी  लोग  मिले,
कहीं  भी  जिस  किसी  गली  से  हम वहां गुजर गए.
 
                                         -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

    

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