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कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

तुझे क्या मिला -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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तिरंगे  का   करके  अपमान  तुझे  क्या मिला? ओ  धरती  के भगवान!  बता  तुझे क्या मिला? तुम    तो    कहते   थे   तिरंगा   मेरी   शान  है; तुम    तो   कहते    थे   तिरंगा   मेरी   जान  है; खोकर  अपनी  पहचान  बता तुझे  क्या मिला? ओ   धरती  के  भगवान  बता  तुझे क्या मिला? पूछता  है   अब लाल   किला  का  यह  प्राचीर; रक्षा   में   जिसकी   मिट  गए  हैं   कितने  वीर; तुम  बस  भांजते  रह   गए  हो  यहां   शमशीर; शर्मसार  कराके   बलिदान   तुझे   क्या  मिला?                                     -धर्म...

आँखें -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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तेरे      तो      दोनों     नैना   कजरारे  हैं.                     जिससे  मिलें  बस  उसी के बारे-न्यारे  हैं. कैसी   अजीब   उलझन  -सी   तन्हाई  है; आज  कहाँ   तुमने  यह   रात   बिताई  है; तेरी   तो    दोनों   अँखिया    अलसाई  हैं; मेरे   सपनों   को   कहाँ     छोड़  आई  हैं;                      जाने   तूने   किसके   भाग्य   सवारे  हैं! राज   निखर   रहे   तेरे  नयन   -कोरों   से; काले   बालों    के    बिखरे  -से   डोरों  से; कंचुकी   की...

भक्त हरिनाथ : - डॉ.सुरेश पाठक

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( डॉ.  सुरेश पाठक हिंदी के प्रसिद्ध समालोचक थे। उन्होंने भक्त हरिनाथ और उनके साहित्य पर बहुत ही महत्वपूर्ण शोध परक अनेकानेक निबंध लिखे हैं। यहां प्रस्तुत है उनके द्वारा पांच दशक पूर्व लिखे गए भक्त हरिनाथ की जीवनी पर आधारित दो निबंध जो क्रमशः 'कल्याण' और 'शाकद्वीपीय ब्राह्मण बंधु' में प्रकाशित हुए थे। आशा है, इससे पाठकों की  भक्त हरिनाथ की जीवनी  संबंधी जिज्ञासा कुछ हद तक शांत होगी !) कृष्णभक्त कविवर हरिनाथजी (लेखक -श्रीसुरेशजी पाठक, साहित्याचार्य, एम.ए.) श्रीहरिनाथजी पाठक  गया (बिहार) जिलेके जहानाबाद अनुमण्डलान्तर्गत पाठक बिगहा नामक गाँवमें संवत् १९०० में भक्तवर श्रीहरिनाथजी पाठकका आविर्भाव हुआ था। प्रारंभमें आपने अपने पूज्य पितासे वेद-वेदाङ्गकी शिक्षा प्राप्त की और तत्पश्चात गया जिलेके मकसूदपुर ग्रामके महान् विद्वान् आचार्य शिवप्रसादजी मिश्रसे वेद-वेदाङ्ग, उपनिषद्, वेदान्त और सांख्यका विशिष्ट अध्ययन किया। साधनामें बहुत आगे होनेके कारण आचार्य मिश्रजीने अपने शिष्यको उच्च कोटिका साधक बनाया। पाठकजी हिंदी और संस्कृतके रससिद्ध कवि भी थे।         ...

मैंने देखा -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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मैंने  एक अमीर देखा.... बिका हुआ  जमीर देखा.... नंगा नाचता हुआ मन पर ढका हुआ  शरीर देखा.... इस सर्द मौसम में  मैं कांप रहा था... और वह  मेरे अरमानों की  अंगीठी ताप रहा था......! -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

सुना है -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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सुना है एक नए कलयुगी महाभारत का आगाज हो रहा है! खुलेआम धृतराष्ट्र का आत्मज ताल ठोक रहा है.… एक बार फिर वह अपने कुल को युद्ध की अग्नि में झोंक रहा है और  न्याय के सीने में स्वार्थ का खंजर भोंक रहा है... -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

ढूंढ रहा हूं -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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आजकल  रिश्तों के खंडहर में  पुरखों का गांव  ढूंढ रहा हूं. मिट्टी में सने उनके  धूल-धूसरित  पांव के निशां  ढूंढ़ रहा हूं. उनके बोये हुए  बरगद की टहनी से निकले हुए  जड़ में अपनी उमस भरी  जिंदगी से ऊब कर थोड़ी -सी  शीतल छांव  ढूंढ  रहा हूं. मैं अपने बचपन का खोया हुआ गांव  ढूंढ रहा हूं. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक. 

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