कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

सुना है -धर्मेन्द्र कुमार पाठक


सुना है
एक नए कलयुगी
महाभारत का
आगाज हो रहा है!
खुलेआम
धृतराष्ट्र का आत्मज
ताल ठोक रहा है.…
एक बार फिर
वह अपने कुल को
युद्ध की अग्नि में
झोंक रहा है
और 
न्याय के सीने में
स्वार्थ का खंजर
भोंक रहा है...

-धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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