कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

लिख दूं. -धर्मेन्द्र कुमार पाठक



लिख दूं.

आज तेरी  पलकों  पर  प्यार  लिख दूं.
तेरे   लिए    सारा    संसार   लिख   दूं.

खुशियों   की  आभा  से   खिलते  हुए
चेहरे   पर   सोलह    सिंगार  लिख  दूं.

उन्नत   उरोजों   पर   उभरे   हुए   मृदु
सहज  हृदय - राग को मल्हार लिख दूं.

नव पल्लव पर विकसित नव प्रसून को,
कच्ची   कली   को   कचनार   लिख दूं.

हवा    के    थपेड़ों    से    झूमती   हुई
अलकों  की  घटा  को   बहार  लिख दूं.

                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

टिप्पणियाँ

  1. लाजवाब जितनी भी तारीफ की जाए आपकी रचना की वह अल्प प्रतीत होगा

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    1. बहुत-बहुत आभार! आपके उत्साहवर्धन से हमें और बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है।

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