कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

मेरी ख्वाहिशें -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

मेरी ख्वाहिशें

मेरी ख्वाहिशें  बच्ची की तरह ठुनकती रहीं. 
बार -बार  अपना  इरादा  खूब बदलती रहीं.

वे  ढूंढ  रहीं थीं  अपनी हमजोली प्यारी-सी,
बस  उसी के  एहसासों पर तो मचलती रहीं.

सपने  संजोए  उसी के  लिए अपने दिल में,
जो ठोकरें  खाकर भी हर बार संभलती रहीं.

अब  तुझे  क्या  बताऊं अपनों की हकीकत,
जिनकी  यादें  सदा दर्द बनकर उभरती रहीं.

-धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

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