कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

अचरा से उड़ा द त जानी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

अचरा से उड़ा द त जानी

अबकी सवनमा में,
खेत-खलिहनवा में,
जम के बरस गेलो पानी!

रह-रह के कजरारे,
बदरा   इ   बरियारे,
कर हौ मनमानी।।१।।

हरिअर-हरिअर खेतवा में,
अरिअन    के   बीचवा में,
धनवा के अजबे जवानी।।२।।

जब-जब  तोरा से,
प्रीत के कटोरा से,
मिलेला हम ठानी।।३।।

जतरा  पर बदरा,
दिखाके उ नखरा,
कर हौ मनमानी।।४।।

इस जुल्मी बदरा के,
धरती  के  भॅवरा के,
अपन  तू  अचरा से,
उड़ा द त जानी।।५।।

प्यार के  इयाद  लेके,
बेमौसम बरसात लेके,
पुलकित हौ अंखियां में पानी।।६।।

ओठवा के लाली में,
कनमा  के  बाली में,
बतियावइत हौ प्यार के बतिया पुरानी।।७।।

टेढ़-मेढ़     रहिया     में,
कसल-कसल बहियां में,
घघरा तोर गगरा के सुनावौ कहानी।।८।।

धुक-धुक छतिया में,
प्यार   के  पतिया में,
सहेज के तू रखले ह हमर निशानी।।९।।

-धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

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