कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

प्यार नया है! -धर्मेन्द कुमार पाठक

प्यार नया है!

समझ  नई,  संस्कार नया है।।
जीवन  का  व्यवहार नया है।।

हम  जिस घर में रहते हैं वह,
सच   मानो  परिवार  नया है।।

अचरज  से  हम  देख रहे हैं;
यह   सुंदर   संसार   नया  है।।

शांत स्निग्ध मृदु दो नयनों में,
बसा  हुआ यह  प्यार नया है।।

प्रकृति के नवल परिधानों में,
सज्जित  यह  श्रृंगार नया है।।

नव पल्लव की मधु कोमलता
जग  का  यह विस्तार नया है।।

         -धर्मेन्द कुमार पाठक

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