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कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

मेरी दीदी : एक स्मृति

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मेरी दीदी : एक स्मृति  ऐसी गहरी नींद तो दीदी को कभी आती नहीं थी। आज ऐसे सोई है कि जगने का नाम ही नहीं लेती। वह हल्के से हड़के -से जाग जाती थी। खासकर, टनटुन जब उसे 'मां' - 'मां' कहकर बुलाता तो वह कहीं भी हो दौड़ी चली आती। मगर आज वह उसके पैरों पर जार-बेजार रो रहा है लेकिन वह उठने का नाम ही नहीं लेती। यहां तक कि कुकू, मुकू, अनी सब रो रहे हैं लेकिन वह किसी की सुनती ही नहीं। साथ में, जामाताश्री निशांत की आंखों में आंसू भरे हैं। जीजाजी भी पछाड़ खाकर रो रहे हैं लेकिन इसका भी उस पर कोई असर नहीं। मैं उसके सामने फूट-फूट कर रो रहा हूं। फिर भी, उसका दिल नहीं पसीजता । वह तो मेरा नाम सुनते ही दौड़ पड़ती थी लेकिन आज वह मुझसे कुछ इस तरह मुख मोड़े है कि जैसे पहचानती ही नहीं। आखिर मुझसे ऐसी क्या भूल हुई जो उसने इस तरह भुला दिया। मेरी  समझ में कुछ नहीं आ रहा। बस मैं रोए जा रहा हूं।...... अभी तो आपको कुकू की शादी की सारी  बातें बतानी थी। मां आपका इंतजार कर रही थी। लेकिन आप तो मां को भी छोड़ कर चली गईं! -    "बड़े शौक से जमाना सुन रहा था,             ...

संकट की घड़ी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

                संकट की घड़ी                                   -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.   कौन  देगा  साथ आज संकट की  इस  घड़ी में? हर  कोई   है  यहां  तो  अपनी   ही  हड़बड़ी  में. कौन   डालेगा   गले   में   सुप्रेम   का    पुष्पहार, हर  कोई  है   खोया  दिखावे  की   फुलझड़ी  में? मन  बहुत  बेचैन  है  अब  पाता  नहीं  कहीं चैन, कौन  दिखाए  राह  गफलत की  इस गड़बड़ी में? हम   जिसे   समझते  रहे  अपना   देते  थे  जान, वही  जकड़  गया  है आज  हमें  इस हथकड़ी में. किस एक पर अब मैं कर दूं अपने दिल को फिदा? हर  कोई   है  खास  यहां  प्यार ...

रिश्ता प्यार का

रिश्ता प्यार का           ‌‌‌‌‌             -धर्मेन्द्र कुमार पाठक  खूब     मुस्कुराइए,    ठहाका    लगाइए। मगर  कभी  बेवजह  प्यार  मत जताइए।। मुश्किलों  के  वक्त  अगर  साथ ना दे तो दिल  को  झूठे  ख्याल में  मत  फंसाइए।। जो  लिखा  है  किस्मत में वह मिलेगा ही, सुख-दुख में बस एक -सा साथ निभाइए।। तन्हाइयों   में   खुद   से  करता  हूं  बात,  झूठे  साथ  का  अहसास  मत दिलाइए।। मिलने का मन हो यदि तो मिलिए जरूर, झूठ - मूठ   कभी  बहाना  मत  बनाइए।। अब  खुशी  से  आइए,  खुशी  से जाइए; रिश्ता  प्यार  का  है,  प्यार से निभाइए ।। खुद से मिलने का मजा ही  कुछ और है, एक  बार  नजर  से  नजर तो मिलाइए।। दिल में बैठकर कभी दिल मत टटोलिए,  हिम्मत है तो दिल से...

इशारा -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

डूबते  को तिनके  का  सहारा काफी।। इंसान को तो बस यहां इशारा काफी।। तन्हा चलने का हौसला तो रखो तुम; कदम  को   तेरी  चूमेगी  कामयाबी।। अंधेरे  को  चीर  कर   निकलता  सूरज; सुबह तक अपनी कोशिशें तो रख जारी।। हीरे   को   तो   तराशा   ही   है   जाता; छेनी  की   चोट   लगती   ही  है   भारी।। तपोगे   तभी   तो  निखरोगे  तुम  प्यारे; मिट   जाएगी   हरेक   तुम्हारी   खामी।।

चली गई! -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

एक मुक्त गीत (   यह गीत मुक्त - छंद में निबद्ध है) वह एक ख्वाब बनकर चली गई ! सबके लिए लाजवाब बनकर चली गई! दुनिया की तोहमतों पर उसने कुछ कहा नहीं; तुम जो समझते रहे, वह उसकी जहां नहीं; अनंत में वह मिल गई, अब वह कहां नहीं? बस हल्के से मुस्कुरा कर चली गई ! खुदा का ख्वाब बनकर चली गई! सबका जवाब बनकर चली गई! सबको उसकी शख्सियत पर सवाल था; सबको अपने आपका ही ख्याल था; उसके रूबरू होने का मलाल था; वह सबके लिए मिसाल बन कर चली गई! अब किस हक से उस पर आंसू बहाते हो? बेवजह प्यार इतना जताते हो; उसे अपनों से भी अपना बताते हो; सबके लिए वह ख्याल बन कर चली गई!

मन की गति -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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मन की गति मन  ही  मंथरा  और  मन  कैकेई। मन  की  गति  को बुझै नहीं कोई।। कभी चंचल बहुत, कभी गति हीन। कभी सुख - चैन  लेता सभी छीन।। कभी  प्रभु - पद का  रहे अनुरागी। कभी  विषय - भोग का रहे भागी।। योगी  - भोगी   सभी   एक  समान। सभीको  अपने   स्वार्थ  का  ध्यान।। जगत  के  रिश्ते  हैं  सब  अनजान। हरि चरण का कर  तू नित गुणगान।। -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

तुम

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जरा - सा  और  इंतजार कर लेती तुम! पल  भर  के  लिए प्यार कर  लेती तुम! उसके   झूठे  वादे  पर  ही   मचल  गई,  काश! एक नजर मुझे  निहार लेती तुम! मेरे  दिल  में  भी  चाहत  का  सागर  है, काश! इस  पर  एतबार कर  लेती  तुम! मेरे   प्यार  पर   भरोसा   नहीं   तुझे  है, शायद  इसीलिए इनकार कर गयी तुम! अब   तेरा   मेरा  साथ  रहे  या  न  रहे, बस प्यार से इक  बार पुकार लेती तुम! कहते हैं  इश्क की  किस्मत नहीं  होती, वरना  मुझे तो  स्वीकार  कर लेती तुम!                         -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

अंतस की पीड़ा : धर्मेन्द्र कुमार पाठक

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अंतस  की  पीड़ा  से ये फासले हुए. कई   चेहरे   मिलते   हैं   बदले  हुए. जख्म  हरा है लोग  छिड़केंगे  नमक बहुत  दिन  हो  गए मरहम मले  हुए. हंसी  खोल  देती  है  दिल  का  राज लगते   सबके   अंदाज़   बदले   हुए. अब  तेरी  सांस  में  वो  खुशबू  नही हवाओं  में   हैं  अब  जहर  घुले  हुए. अब क्या बताऊं अपने दिल का हाल जमाना  हो  गया  खुद  से  मिले  हुए. मैंने  तो  वही  किया  जो  लगा  सही क्यों  हो  गलत  बताने  पर  तुले हुए ? -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

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