कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

संकट की घड़ी -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

               संकट की घड़ी
                                  -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.
 
कौन  देगा  साथ आज संकट की  इस  घड़ी में?
हर  कोई   है  यहां  तो  अपनी   ही  हड़बड़ी  में.

कौन   डालेगा   गले   में   सुप्रेम   का    पुष्पहार,
हर  कोई  है   खोया  दिखावे  की   फुलझड़ी  में?

मन  बहुत  बेचैन  है  अब  पाता  नहीं  कहीं चैन,
कौन  दिखाए  राह  गफलत की  इस गड़बड़ी में?

हम   जिसे   समझते  रहे  अपना   देते  थे  जान,
वही  जकड़  गया  है आज  हमें  इस हथकड़ी में.

किस एक पर अब मैं कर दूं अपने दिल को फिदा?
हर  कोई   है  खास  यहां  प्यार  की  इस  लड़ी में.

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