कइसे जियब ए जान...

तोरा  बिना  हम  कइसे  जियब ए जान. अन्दरे   हमर   दिल   खखोरैत  हे परान.               दिलवा   हमर  तो   हे  केतना  नादान,                तनिको   ना    रह   हे   एकरा  धेयान. चोरी - चोरी  रोज  हम  करहिओ बात, तैयो  ना   जिउआ  हमर  जुड़ा हे जान.                   मोबलिया से  हमर  मनमा ना भर हौ,                    मिलेला  मनमा अबतो खूब छछन हौ.  दुखवा के तू कब  आके करब निदान, मिलेला   तोरा  से  छछनैत   हौ प्रान.                                       -धर्मेन्द्र कुमार पाठक.

अलग ही मजा है ! -धर्मेन्द्र कुमार पाठक

अलग ही मजा है!
               -धर्मेन्द्र कुमार पाठक 

छन्द  में चौपाई का, 
रिश्ते में भौजाई का, 
संख्या में दहाई का, 
और 
जाड़े में रजाई का अलग ही मजा है!

प्यार में तनहाई का, 
भगवान में कन्हाई का, 
वेदना में जुदाई का, 
और 
विवाह में विदाई का अलग ही मजा है!

बीमारी में दवाई का, 
महफिल में कविताई का, 
जेल में रिहाई का, 
और 
हवा में पुरवाई का अलग ही मजा है!

खुशी में मिठाई का, 
शरारत में ढिठाई का, 
भोर में पढ़ाई का, 
और 
जलाने में सलाई का अलग ही मजा है!

चेहरे में ललाई का, 
संकट में चतुराई का, 
बिस्तर में चारपाई का, 
और 
मनाने में बड़ाई का अलग ही मजा है!

घर में माई का,
लड़ाई में भाई का,
ससुराल में जमाई का,
और 
प्यार में सगाई का अलग ही मजा है!
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